Book Title: Anekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 15
________________ अनेकान्त निर्वाणकाण्ड मे वर्णित सभी तीर्थों का उल्लेख है । चिमणा- पावागिरि नाम का या सुवर्णभद्र का उल्लेख नहीं करते । पण्डित ने कैलास की वन्दना मे भरतनिर्मित मन्दिरों का, अतिशयक्षेत्रकांड के तीर्थों मे उन्होंने वाराणसी, मथुरा, पावापुर के पग्रसरोवर का तथा पावागिरि (लवकुश- जम्बूवन, सिरपुर, मागतदेव, हुलगिरि, इन छः स्थानों का सिद्धिस्थान) में गगादास द्वार। निर्मित मन्दिरो का भी वर्णन किया है। उल्लेख किया है। इन्होने तारगा मे कोटिशिला का सबध पन्द्रहवीं सदी के लेखक श्रुतसागर की बोधप्रामृत टीका जोड़ा है। यद्यपि कलिंगदेश का नाम भी इन्होने दिया है। में गाथा २७ के विवरण मे कैलास, चम्पापुर, पावापुर, मेढगिरि के स्थान में वे मुगतागिरि नाम का प्रयोग करते ऊर्जयन्त, समेदाचल, शत्रुजय, पावागिरि (गुजरात में), है तथा वहाँ मेढा (मराठी शब्द जिसका तात्पर्य बकरा तगीगिरि, गजपथ, सिद्धकूट, तारापुर, मेढगिरि, चूलगिरि, हैं) के उद्धार की चर्चा करते है, वहाँ की अखड तीर्थधारा द्रोणगिरि, नर्मदातट, कून्यगिरि, चलनानदीतट, कोटिशिला (नदी का प्रवाह) तथा अपार मन्दिरो व मूतिया का भी इन तीर्थों का नामोल्लेख है तथा अतिशयक्षेत्रकाड के तीथों उन्होंने जिक्र किया है। अतिशयक्षेत्रकाण्ड के क्षेत्रो मे वे मे से वाराणसी, हस्तिनापुर तथा जम्बूवन का नामोल्लेख सिर्फ सिरपुर का उल्लेख करते है तथा वहाँ के अन्तरिक्ष है। इन्ही की पल्याविधानकथा की प्रशस्ति मे ईडर के पासोजी (पार्श्वनाथ) की खरदूषण तथा श्रीपाल राजा मन्त्री भोजराज की कन्या पुत्तलिका द्वारा तुगी और गजद्वारा पूजा की चर्चा करते है। इसके अतिरिक्त लतासर्प- पन्थ की यात्रा का भी वर्णन है। वेष्ठित गोमटस्वामी तथा प्रतिष्ठान के मुनिसुव्रतमन्दिर पन्द्रहवी सदी मे ही अभयचन्द्र ने मांगीतुंगी के विषय का उन्होंने वर्णन किया है। निर्वाणकाण्ड की दो प्रक्षिप्त मे एक विस्तृत गीत (जिसमें मुख्यतः श्रीकृष्ण के अन्त व गाथाओं का अनुवाद भी इनकी रचना में मिलता है जिनमे बलराम के स्वर्गवास की कथा है) लिखा है। इसमे ४४ नर्मदातीर पर संभवनाथ की कैवल्यप्राप्ति का तथा मेध- पद्य है। वर्ष तीर्थ में मेघनाद की मुक्ति का उल्लेख है। पूर्वोक्त गुणकीति ने भी ५ पद्यों का एक गीत तगी६. अन्य उल्लेखकर्ता : गिरि के विषय मे लिखा है। उपर्युक्त चार लेखकों ने मुख्यतः निर्वाणकाड के सोलहवीं सदी के सुमतिसागर की जम्बूद्वीपजयमाला आधार पर अपनी रचनाए लिखी प्रतीत होती है। कुछ तथा तीर्थजयमाला में कुल ४० तीर्थ स्थानों के नाम उल्लिअन्य लेखकों ने भी तीर्थसम्बन्धी कृतियो मे निर्वाणकाड- खित है। इनमे कैलाश, समेदाचल, चम्पापुर, पावापुर, वणित कूछ तीर्थों के नाम सम्मिलित किये है। सत्रहवी गजपन्य, तगी, शत्रंजय, ऊर्जयन्त, मुक्तागिरि, तारगा (तथा सदी के लेखक ज्ञानसागर की सर्वतीर्थवन्दना मे कुल ७८ कोटिशिला), वासीनयर (कथुगिरि के लिए), रेवातट तथा स्थानों का वर्णन १०० छप्पयों में मिलता है। इन्होंने विंध्याचल (चलगिरि के लिए) ये तेरह तीर्थ निर्वाणकाण्डसंमेदाचल, चम्पापुर (तथा वहाँ के प्रचड मानस्तम्भ). वणित भी है। इन्होने अन्तरिक्ष (सिरपुर के पार्श्वनाथ) पावापुर (नथा वहाँ का तालाब के मध्य का मन्दिर), का भी नामोल्लेख किया है । ऊर्जयन्त (तथा वहाँ के सहसावन, लक्खाबन, राजुन की सोलहवी सदी के लेखक ज्ञानकीर्ति ने समेदाचल पर गुफा, भीमकुड, ज्ञानकुड तथा सात टोके), शत्रुजय (तथा राजा मानसिंह के मन्त्री साह नानू द्वारा जिनमन्दिरों के वहाँ के ललित सरोवर एवं प्रखयवड), तुगी, गजपथ, निर्माण का वर्णन किया है। यह उनके यशोधररचित के मुक्तागिरि (तथा वहाँ की नदी, मन्दिर, धर्मशाला तथा प्रशस्ति में प्राप्त होता है। पाँच दिन की यात्रा), कैलास, तारगा (तथा कोटिशिला). सत्रहवी सदी के लेखक सोमसेन की पुष्पाजलि जय पावागढ, कुंथुगिरि, वडवानी तथा सहेणाचल (सम्भवतः माला में कैलास, चम्पापुर, पावापुर, संमेदाचल, गिरनार सवणाबिरि के स्थान पर) इन निर्वाणकांडवणित स्थानों वडवानी, गजपन्थ, शत्रुजय, मुक्तागिरि, नर्मदातट ये निवा का उल्लेख किया है। वे उनका भी वर्णन करते हैं किन्तु काण्डवणित तथा गोमटदेव एवं अन्तरिक्ष (सिरपुर)

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