Book Title: Anekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 13
________________ अनेकान्त कर पीडिया पुहइ सयला समग्गा, वसाउथ्य साहय चउरो वि मग्गा। णियट्ठाण वासाई लोएहिं चत्ता, महा दुग्ग दूरम्मि सेहि पत्ता । महंमदसाहो वि राम्रो पयंडो, लियो तेण सायर पमाणेहि बंडो। उसक्किट णिछलिवि मलिनो वि माणो, किमो रज्ज इकच्छत्ति उवयंतमाणो। पप? वि दूसम्मि काले रउद्दे, पत्तो सुबाषय वफरायवादे । इहत्ति परत्तं सुहायार हेउ, तिणे लिहिय सुअपचमी णियहं हेउ ।। लिहेऊण सत्थोपसत्थाय लोए, पवुच्छामि जसु कित्त जिम पयडहोए। सुसंवच्छरे अषिकरा विक्कमेण, अहोएहिं तेणवदि तेरह सएणं । वरिस्सेय पुसेण सेयम्मि पक्खे, तिहि वारसी सोम रोहिणिहि रिक्खे । सुहज्जोइमय रगमो बुद्ध मत्तो, इप्रो सुंदरो सत्थु सुह दिणि समत्तो। जु भव्वोयणो पढइ भव्वाण लोए, सुदुक्कम्म णिग्गहु करइ मच्च लोए । जु धारेइ वउ पुणु जहा जुत्ति कहियो, मणो णिच्चले बंभचहि सहियो। सरिद्धीइविडीइ संपूण्णवतो, पण देवलोयम्मि ठाणे पहत्तो। घत्ता-तारायण ससिहरु जाम रवि, जावंचिय जिणधम्म कहा । णिसुणत पढ़तह भव्वयण ता गंदउ महि सत्थु इह ॥ २ ॥ संवत् १४८० वर्ष कातिग वदि सुक्र दिन श्री राइसीह पुत्र हलू पुस्तक लिषितं । तैलाद रक्षेद् जलाद रक्षेदू रक्षेद् सिथिलबन्धनात् । परहस्तगतं रक्षेत् एवं वदति पुस्तिका।। देह से राग करना अहितकर है कविवर दौलतराम मत कीजो जी यारी, घिनगेह देह जड़ जानिके ।। मत की० ॥टेक।। मात-तात-रज-बीरजसों यह, उपजी मल फूलवारी। अस्थिमाल-पल-नसा-जालकी, लाल लाल जलक्यारी । मत की० ॥१॥ कर्मकरगथलीपूतली यह, मूत्रपूरीष भंडारी । चर्ममँड़ी घड़ी धन, -धर्म चुरावनहारी ।। मत की० ॥२॥ जे जे पावन वस्तु जगत में, ते इन सर्वविगारी । स्वेदमेदकफक्लेदमयी बह, मद-गद-व्यालपिटारी । मत की० ॥३॥ जा संयोग रोगभव तोलौ, जा वियोग शिवकारी। बुध तासों न ममत्व करै यह, मूढ़मतिन को प्यारी । मत की० ॥४॥ जिन पोषी ते भये सदोषी, तिन पाये दुख भारी। जिन तप ठान ध्यानकर शोषी, तिन परनी शिवनारी ।। मत की० ॥५॥ सूरधनु शरदजलद जलबुदबुद, त्यों झट विनशनहारी।। यातें भिन्न जान निज चेतन, दौल होहु शमधारी ।। मत को० ॥६॥

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