Book Title: Anekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 14
________________ किरण १ भगवान महावीर का शासन मिथ्यात्व भी अनादि है और सम्यक्त्व भी अनादि। इस पर उन्होंने प्रश्नोत्तर भी किये । यह बात बौद्ध धर्म के फिर भी एक हालाहल है और दूसरा अमृत । अमृत और विष शास्त्रों के अध्ययन से स्पष्ट ज्ञात होती है। को पहचानने के लिए विवेक की जरूरत है। इसलिए भग- इसमें कोई शक नहीं कि भगवान् महावीर का शासन वान ने भेदक बुद्धि पर बहुत जोर दिया है। उन्होंने धर्म सभी दृष्टियों से अद्वितीय एवं लोक हितकारी था। यदि की जो व्याख्या की है वह त्रिकालाबाधित है। यह धर्म उसका मूल रूप आज तक मानव-मानस में प्रकाशित होता अहिंसा रूप है । वह धर्म जब मनुष्य के मन में उतर जाता रहता तो देश का प्राचीन इतिहास न रक्त रंजित होता है तब वह मारने वाले को भी नहीं मारता । प्राचार्य गुण- और न उसे घोर अत्याचारों का सामना ही करना पड़ता। भद्र कहते है : भगवान् महावीर के शासन में साम्प्रदायिकता, हिंसा और धर्मो वसेन्मनसि यावदलं स तावद् जाति कुल आदि के अभिमान को भी कोई स्थान नहीं है। हंता न हन्तुरपि पश्य गतेऽथत्ति तस्मिन् ।। जैन वाङमय में इनकी स्थान-स्थान पर हेयता बतलाई गई दृष्टा परस्परहतिर्जनकात्मजानाम् । है। ये ही वे बुराइयाँ है जिनसे भूतकाल मे भारतीय राष्ट्र रक्षा ततोऽस्य जगतः खलु धर्म एव ॥ का पतन हुग्रा और दुःख की बात तो यह है कि आज -आत्मानुशासन २६ स्वराज्य मिल जाने के बाद भी ये बुराइयां हमारे देश में नाम शेष नहीं हुई। वास्तव में भगवान महावीर का धर्म मन में नही रहने से पुत्र पिता को और पिता तीर्थ सर्वोदय तीर्थ है और इस तीर्थ के प्रचार होने की पुत्र को मार डालता है किन्तु यदि धर्म मन में हो तो वह आज सर्वाधिक आवश्यकता है; क्योकि इसी तीर्थ में माधुमारने वाले को भी नहीं मारता इस प्रकार के धर्म को यदि निक सभी समस्याओं का समाधान है। चाहे फिर वे राष्ट्रीय कोई महज क्रिया-काण्डों में खोजे तो उसे निराश ही हों या अन्तर्राष्ट्रीय अथवा सामाजिक । होना पड़ेगा। प्रश्न यह है कि महावीर का शासन इतनी विशेषता अाज तक मतुण्य ने मनुष्य पर जितना अत्याचार एवं क्षमता-वाला होने पर भी केवल थोड़े से जैनों तक ही किया उतना किसी अन्य ने नहीं किया। स्त्री और शद्रों सीमित क्यों है ? वह अपनी ओर साधारण जन को क्यों पर किये गये उसके अत्याचारों की कहानी बड़ी ही आकृष्ट नही करता? उसकी उपयोगिता की सुरभि क्यों रोमाञ्चकारी एवं लम्बी है। ग्राहचर्य तो यह है कि उसने नहीं लोगों के लिए मोहक बनती और वह आज ह्रास की ये अत्याचार धर्म के नाम पर किये। भगवान् के युग में ओर क्यो जा रहा है ? निःसन्देह ये प्रश्न ऐसे हैं जो ये अत्याचार पराकाष्ठा को पहुँचे हए थे। उन्होंने इन जैनत्व के लिए खुली चुनौती है। क्या महावीर के अनुयायी अत्याचारों के विरुद्ध जोरदार आवाज उठाई और लोगों इस चुनौती का उत्तर देने को तैयार है ? इसका सही को 'स्त्रीशद्री नाधीयताम्' अर्थात स्त्री और शद्रों को पढ़ने उत्तर तो हम भगवान् महावीर के सिद्धान्तों को अपने का अधिकार नही है-की निरर्थकता बतलाई। उनकी जीवन में व्यक्तिगत उतार कर इनकी वास्तविकता को इस दिव्य देशना को काफी सफलता मिली तथा स्त्री एवं और लोक मानस को प्राकृष्ट करके ही दे सकते है। शूद्रों ने पाराम का श्वांस लिया। यह एक ऐसी क्राति थी आज से करीब अठारह सौ वर्ष पहले प्रख्यात ताकिक जिसे महावीर ही कर सकते थे । महावीर ने स्त्रियों और जैनाचार्य स्वामी समन्तभद्र के सामने भी यह प्रश्न था। शद्रों को मानवता की दृष्टि से देखा। स्त्रियों को इतनी उदा- उन्होंने अपने सुप्रसिद्ध स्तोत्र युक्त्यनुशासन में इसका रता के साथ महावीर के अतिरिक्त शायद ही किसी ने देखा उत्तर भी दिया है। वे भगवान् महावीर को लक्ष्य करके हो। उन्होंने स्त्रियों को भी अपने संघ में आदरणीय स्थान कहते हैं :दिया। यह एक ऐसी घटना थी जिसकी चर्चा भगवान् काल: कलिर्वा कलुषाशयो वा बुद्ध और उनके अनुयायियों ने आश्चर्य के साथ सुनी और श्रोतुः प्रवक्तुर्वचनानयो वा ।

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