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[वर्ष १३ जैन साहित्यका भाषा-विज्ञान-दृष्टि से अध्ययन
[२११ ___ यहाँ मैं एक दो उदाहस देकर इस अध्ययमका महत्व भाषा विज्ञानको दृष्टिसे अध्ययन जरूरी है। भाषा विज्ञानके बताना चाहता है। श्री कुनकु'दाचार्य विक्रमकी पहली विना उसका ठीक अर्थ करना असम्भव नहीं तो कठिन सदीके प्रसिद्ध भाचार्य माने जाते है। उन्होंन बहुतसे जन अवश्य है। ग्रंथोंकी रचना की है। उनके एक ग्रन्थका नाम 'बारम इमसे माफ कि जैन साहित्यका भाषा विज्ञानकी दृष्टिप्रणवेक्या है। इस बारससे ही 'स' का 'ह' होकर बारह से अध्ययन न क्वल जैन समाजके लिए आवश्यक है तथा बना है। इस प्रकार इस बारह शब्दकी जड़ें दो हजार वर्षसे महत्वपूर्ण है, यरन ममस्त भारत और विशेषकर हिन्दी भी अधिक पुरानी हैं । बारमका बारह का हुश्रा क्या हिंदीके अगतक लिए अत्यन्त आवश्यक है। जैन समाजने अपने जानकारों के लिए यह जानना भावश्यक नहीं है ? इसी प्रकार साहित्यकी उपेक्षा करके बई वार गलती की है। पर इस 'बारस' में जो है और जिसका अर्थ दो है, उससे ही समय सबसे बडा आवश्यकता यह है कि जनसाहित्यका भाषा बेला शब्द बना है, जिसका अर्थ दो दिनका उपवास है। विज्ञानको दृष्टिम अध्ययन किया जाय और उसके फलस्वरूप यह शब्द आज भी जैन समाजम-स्त्रियों तकमें-बोलनेमें प्राप्त होने वाली बान और निष्कर्ष विद्वानों और भाषाभाता है। पर हममें कितने जानते हैं, कि बेला शब्द पहले शानियों के सामने रखे जाये, जिसमे ममम पर उसका ढोक पहन कब कियने साहित्य में प्रयुक्र किया ? इसी प्रकार दूसर उपयोग हो सके। गौर पूंकि उपयोगका समय दूर नहीं है, सहस्रों शब्दों की बात है । हर एक पारिभाषिक शब्दका ही इसलिए इस कामको शीघ्र में शीघ्र हाथ खेने की आवश्यनहीं बल्कि दूसरे शब्दोंका भी इतिहास होता है, जिसका कता है। यदि यह कहा जाय कि इसे आवश्यकता नम्बर एक जानना भाषाविज्ञानकी दृष्टिम जरूरी है।
माना जाय तो कोई अतिशयोक्ति न होगी । जब शब्दाका व्युत्पत्ति, रूप परिवर्तन और अर्थ विकास- अब यह काम कैस होना चा। उसकी कार्य विधि की बातें आ ही गई और वे पानी अनिवार्य धीं, तब यहाँ और ढंग यहाँ बनाये जाते है:मंसारको जीवित भाषा अंग्रेजी के बारेमें एक-दो बातें उदा- (१) भागे प्रकाशित होने वाले एक महत्वपूर्ण ग्रन्थहरणरूपमे लिखनकी इच्छाको रोकना कठिन है। अंग्रेजीका के अन्तमें पारिभाषिक अर्धपारिभाषिक शब्दोंकी अनुक्रमणिका प्रसिद्ध कोश 'आक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी है। अंग्रेजी होनी चाहिये। डा. हीरालालजीने सावयधम्म दोहा, दोहपाहुड शब्दोंकी संख्या छः लाख मानी जाती है। इस कोशमें हर और धवलग्रन्थक सब खरडोकेअन्नमें ग्यास शब्दोंको अनुक्रमएक शब्दको व्युत्पत्ति, रूप परिवर्तनका काल और उदाहरण णिकाएँ दी हैं। ऐसे ही पं० मावलान जाने भी नवार्थसूत्रकी तथा समय महिन शब्दके अर्थमें परिवर्तन दिया हुआ है। अपनी टोकामें शब्द सूची दी है। यशोधरचरित्र और
आज गष्ट्रभाषा हिन्दी अपने अभ्युदयके नये मोड और वरांगचरित्र हिन्दी में भी शट अनुक्रमणिकाएँ है। आगे भी नई दिशापर चल रही है। वह अपने ममुत्थानके लिए यह काम होना चाहिये। मबारसे प्रकाशशाली तथा राह पानेका प्रयत्न कर रही (२) द्रव्यानुयोग, करमानुयोग, चरणानुयोग और प्रथमाहै। उसकी रूप-रेखा बदलनेके लिए ग्वींचतान हो रही नयोग और प्रमाण-नयकं ग्रंथोंके लेखक प्रसिद्ध-प्रसिद्ध प्राचाहै। हिन्दीका शन्न भंडार अगले पांच-सात वर्षो में लाखोंकी योक ग्रन्थों परमे उन प्राचार्योकी शब्दावली तय्यारकी जानी संख्यामें पहुँच जायगा। इसके नये-नये कोष तैयार हो रहे चाहिये । उदाहरण के तौरपर अभी नुलसी-शब्दावली, हिन्दु. हैं, नये-नये शब्द बन रहे हैं। आगे और भी कोष और स्तानी एक्डेमी, इलाहाबादसे प्रकाशित हुई है । इमी ढंग शब्द बनेंगे। तब उसके बहुनसे शब्दोंके रूपों, व्युत्पत्तियों पर ममंतभद्-शनावली, कुन्दकुन्द-शब्दावली, अकलंकऔर अर्थ-परिवर्तनोंको जाननेके लिए जैन सा हत्यमें मिलने शब्दावली, सिद्धसेन-शब्दावली, बनारसी-शब्दावली आदि वाली मामग्रीकी सहायताकी आवश्यकता पड़ेगी। नये तैयार होनी चाहिये । इससे हर एक प्राचाय के कालमें शब्दों शब्दोंकी रचनामें भी जैन माहित्यसे सहायता मिल सकती के जो रूप और अर्थ श्रादि तुलनात्मक तंगम विद्वानोंक सामने है। पर वह सामग्री हिन्दी जगतको कौन देगा? अवश्य ही आजायेंगे । अंगरेजीमें अनुमान लगाया गया है कि यह काम जैनोंका है, अजैनोंको तो उसका पता भी नहीं। शेक्सपीयरके सभी प्रन्यों में कुल १५... शब्द हैं, मिलटनके
स्वयं जैनग्रन्थोंके अर्थ समझनेके लिए जैन साहित्यका साठ हजारकं लगभग और प्रसिद्ध यूनानी महाकवि होयरके