Book Title: Anekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 228
________________ मलयकीर्ति और मूलाचार प्रशस्ति मलयकीर्ति नामक अनेक विद्वान होगए हैं। उनमें से १४९३ की है, जो मधवकीर्तिके पट्टधर गुरु धर्मकीर्तिके प्रस्तुत मलयकोर्ति भिम ही जान पड़ते हैं। इनका समय स्वर्गवासके बादमें लिखी गई है। इस प्रशस्तिमें अंगविक्रमको १५वीं शताब्दीका अन्तिम चरण है। इनके गुरु पूर्वादिके पाठी विद्वानोंका उल्लेख करनेके अनंतर अपनेसे धर्मकीर्ति थे. जो त्रिभुवनकीर्तिके शिष्य और धर्म, दर्शन पूर्ववर्ती कुछ विद्वानोंके नामोंका समुल्लेख किया गया है साहित्य, व्याकरण और काव्य-कला आदिमें दक्ष थे। ये जिमका सम्बन्ध वागड संघको पट्टावलोसे है, इसी वागडाविद्वान होने के साथ-साथ उग्र तपम्बी भी थे । इन्होंने विक्रम न्वयमें अहंदली प्रादि भुतपारग विद्वानोंका उल्लेख किया संवत १४३ में केशरियाजीके मन्दिरका जीर्णोद्धार गया है। किन्तु उसमें कितने ही महत्वके विद्वानोंको छोड़ कराया था, जो खेलामण्डपमें लगे हुए शिलालेखसे स्पष्ट है। दिया गया है जिन्हें वागड संघका विद्वान नहीं समझा गया। सं. १४३३ में योगिनीपुर (दहली) के पास दिल्ली हां, इसमें धरसेन, भूतवली पुष्पदन्त जिनपालत और समन्तबादशाह फिरोजशाह तुग़लक द्वारा वसाये गए, केरोजाबाद भद्रादि दूसरे खाम विद्वानोंका नाम वांगद संघकी पट्टावसीमें नगरमें, जो उस समय जन धन, वापी, कृप, तडाग, उद्यान गिना दिया गया है. जो विचारणीय है। उक्त विद्वानोंके नाम आदिसे विभूषित था, उसमें अम्वाल वंशी गर्गगोत्री साह इस प्रकार है-धरसेन, भूतबली, पुष्पदन्त, योगीराज जिनलाम्य निवास करते थे। उनकी प्रेमवती नामकी एक धर्म पालित, समन्तभद्र, सिद्धसेन, देवसूरि, वज्रसूरि, महासेन, पत्नी थी, जो पातिव्रत्यादि गुणोसे अलंकृत थी। इनके दो रविषेण, कुमारसेन, प्रभाचंद्र, अकलंक, वीरसेन, अमितसेन, पुत्र थे साहु खेतल और मदन । खेतलकी धर्मपत्नीका नाम जिनसेन, वासवसेन, रामसेन, माधवसेन, धर्मसेन, विजयपरी था जो सम्पत्ति संयुक्त तथा दानशीला श्री। खेतन सन, संभवसन, दायसेन, कशवसेन, चरित्रसेन, महेन्द्रसेन और सगेसे फेरू पल्ह और बीधा नामक पुत्र थे और इन अनन्तकीर्ति, विजयसेन, जयसेन, केशवसेन हुए । उनके पट्टतीनोंकी काकलेही माल्हाही और हरीचन्दही नामकी क्रमशः धर पद्मसन हुए । पद्मसेनके पट्टधर त्रिभुवन कीर्ति हुए, नीन धर्म पत्नियों थी । खेतलक द्वितीय पुत्र मदनकी धर्म- और उनके पट्टधर अनेक विरुदावली विभूषित धर्मकीर्ति हए। पत्नीका नाम रता था, उससे हरधू नामका पुत्र हुआ था इनके शिष्य प्रस्तुत मलयकीर्ति है, हेमकीर्ति और उनसे छोटे और उसकी स्त्री का नाम मन्दोदरी था। खेतल के द्वितीय सहस्त्रकीर्ति हैं, ये तीनों हो यति गुर्जर देशका शासन उस पुत्र पल्हुक मडन, जाल्हा, घिरीया और हरिश्चन्द्र नामक समय कर रहे थे अर्थात् भट्टारकीय गही पर आसीन थे। चार पुत्र थे । इस पार ही परिवार लोग विधिवत जैनधर्म उज प्रशस्ति निम्न प्रकार है:का पालन करने थे. और आहार, औषध, अभय और ज्ञान प्रशस्ति दानादि चारों दानोंका उपयोग करते थे । माह खेनलने गिर प्रणम्य वीरं सर्वज्ञ वागीशं सर्वदर्शिनां । नारका यात्रोत्सव किया था। वह अपनी धर्मपत्नी काकलेही. मयाभिधास्यते रम्यां सुप्रशस्तां प्रशस्तिकाम ॥१॥ के साथ योगिनीपुर (दिल्ली) में पाया था । कुछ समय स्वम्ति रवींदु धात्रीसुनबुधसुरगुरुभार्गवच्छायातनय सुस्व पूर्वक व्यतीत होने पर साहू फेरूकी धर्मपत्नीने कहा विधंतुदक्वादि नवग्रहोहद प्रौढ पंचास्यासनं अष्टमहापत्प्रानिकि स्वामिन ! श्रुन पञ्चमीका उद्यापन कराइये। इसे सुनकर हापितद्वादशकोष्टकरम्यं रमणीयताविराजमान समवमफेरू अन्यन्त हर्षित हुए, तब साहू केरूने मूलाचार नामका रणापविष्ट निग्रन्थ कल्यांगनाभि भौमोरुगवनिताभवनभौम प्रथ श्रुत पबमीके निमित्त लिम्बाकर मुनि धर्मकीर्ति के लिये मकल्पनिलिपमनुजतीर्थककुतस्तस्वपरंपरानंदित शुभजगअर्पित किया। उन धर्मकीर्तिके स्वर्ग चले जाने पर उन ग्रंथ यानिवासिजनं अष्टादशदोष वनिमुक भन्यजनप्रबोधन यम-नियममें निग्न तपस्वी मलयकीतिको सम्मान पूर्वक वितीर्णानन्तमा तन्दुमुदं श्रीवीरजिनेन्द्रं प्रणुल्या व्यासन अपित किया गया। पाठकोकी जानकारीके लिये मलयकीर्ति भन्यजन लिखापितं श्रीमूलाचार पुस्तकस्य प्रशस्तिं चकार द्वारा लिखी गई उक्त ग्रन्थ प्रशस्ति ऐतिहासिक अनुसन्धाता मलयकोतिः ।। विद्वानोंके लिये बड़ी ही उपयोगी है, यही जानकर उसे यहां एकांगधारी योगीशो लोहाचार्य श्रियं क्रियात् । ज्यों की न्यों रूप में नीचे दी जाती है। यह प्रशस्ति संवत युष्माक दानिना मृदयारिदमादानुसारया ॥२॥

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