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४२] अनेकान्त
[वर्ष १३. चामरासन-भानुमण्डल-पिण्डिवृष-सरस्वती, भीमदुन्दुभि-पुष्पवृष्टि-सुमण्डितातपवारणैः । धाम येन कृतालय करिशोभितं मयिलापुरे, नेमिनाथमहं चिरं प्रणमामि नील महत्विषम् ॥७॥ नेमिनाथमनामयं कमनीयमच्युतमक्षयम् , घातिकम-चतुष्टय-जयकारणं शिवदायिनम् ।। वादिराज-विराजितं वरशासनं मयिलापुरे, नेमिनाथमहं चिरं प्रणमामि नीलमहत्विषम् ।।८।।
सानन्द-वन्दित-पुरन्दरवृन्दमौलि-मन्दारफुन्ल-नवैशेखरधूमरांघ्रिम् । आनन्दकन्दमतिसुन्दरमिन्दुकान्तम् , श्रीनेमिनाथ-जिननाथमहं नमामि ॥६॥
हिंसक और अहिंसक (पं० मुबालाल जैन 'मणि')
(पट्पद्)
विषय-कषायासक्त जीव ही परवध ठाने । करे वैर विद्रोह जगत को बैरी जाने ॥ रहै प्रमादो, दीन, व्यसन में लीन, भयातुर ।
करे पाप समरम्म समारंभ प्रारंभ कर कर ॥ हो मूर्खासे मूर्षित सदा जो नहिं निज-हित शुध करे। सो पर जीवन पर दया कर मर्माण कैसे यह दुःख हरे!
विषय कषाय-विरक स्वयं पर दुस्ख परिहारी। निष्प्रमाद, निरवच, अहिंसा • पंथ प्रचारी॥ सब प्रवृत्ति में समिति रूप ही दृष्टी राखे ।
गुप्ति रूप वा रहे सदा समतामृत चाखे । निज प्रात्म शौर्यसे धर्म वा संघ शौर्य दिशि दिश भरे । मणि वही अहिंसा धर्म-ध्वज विश्व शिखर पर फरहरे ।।
इन्द्रिय-सुखमें मग्न जीव निज सुख नहि जाने । निज जाने दिन प्रात्म अहिंसा कैसे ठाने । भास्म या विन अन्य जीव की करुणा कैसी। करुणा दिखती बाह्य जानिये बगुला जैसी ॥ हा विषय-विरत निज जानकर जिसने अपना हित किया। उस दयामूर्ति परश्रेष्टने पर हित भी कर यश लिया । सत्यवचन- माहात्म्य
( २) जल, शशि, मुक्काहार, लेप चन्दन मलयागिर । सत्य वचन के अतिशयकर नहिं अग्नि जलावे । चन्द्रकांति मणि भी त्यों शीतल नहीं तापहर ॥ उदधि न सके डुबाय नदी पड़ती न बहाये ॥ ज्यों प्रिय मोठे सत्य वचन जगजन-हितकारी। वन्दीग्रहमें पड़े ब्यक्ति को सत्य छुड़ावे ।
वदन प्रीति, प्रतीति, शांतिकर, पातपहारी॥ चिर विछ प्रियवन्दुजनों को सत्य मिलावे ॥ 'मणि' सत्यवचन समधर्म नहिं संयम, जप तप बत नहीं। 'मणि' सत्यवचनसे वृद्धि हो देशविदेश प्रसिद्धि हो। है सस्थाकर्षक शक्ति जहूँ सब गुण खिच भावे वहीं॥ हो विश्वहितकर दिव्यध्वनि अन्तिम शिवसुख सिद्ध हो।
(पं. मुशाबा जैन 'मणि')