Book Title: Anekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 383
________________ XXXXXXXXXXXXXXXXXX * स्वागत-गान * [ जो दानवीर साहू शान्तिप्रसाद जी जैन के स्वागतमें वीरसेवामन्दिर के नूतनभवन के शिलान्यास के अवसर पर गाया गया ] ( श्री ताराचन्दजी प्रेमी ) हृदय देखिये जैनजातिके युवक हृदय यहाँ आये हैं, जिनके स्वागत-हित पग-पथपें हम सबने पलक विछाये हैं ! श्री वैभव के वरदान, सरस्वतीके साधक, तेरा स्वागत, श्री जाति के गौरव महान् सन्मान आज तेरा स्वागत !! तुमने वैभवकी शय्या पर जातिका मान बढ़ाया है, तुमने चन्दाके रथ पर भी धरती से ध्यान लगाया है ! दुखियों पर दिलमें दया तेरे, कर्तव्यों पर अनुराग रहा, इस हृदय - कुसुममें सरसवृत्ति का पावन पुण्य पराग रहा !! मन फूला नहीं समाता है, साहू ! तुम सा हीरा पाकर, हृत् - कलियां स्वयं खिली जातीं, गुञ्जित हृद है स्वयमेव मुखर । धन दान दिया, मन दान दिया और भावका वरदान दिया, साहू ! तुमने जातिके हित जाने कितना बलिदान किया !! जीवनकी परिभाषा क्या है, इस जीवनमें तुम जान गए, जीवन धनका उपयोग सही इस जीवन में पहचान गये ! • युवक को साहू, तुम शिक्षा के अवतार हुए, किसीको देख स्वयं साह, दिलमें बेज़ार हुए !! बेजार ये सरस हृदय, ये सहानुभूति, ये अपनापन, ये कोमलता, निज गुणसे फहरा दी तुमने अब जैनधर्मकी कीर्ति-पता ! हे भारत गौरव महान्, हम करते हैं तेरा वन्दन, हे सरलवृत्ति, हे मूर्तिमान्, करते हैं तेरा अभिनन्दन !! *X;*—

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