Book Title: Anekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 382
________________ किरण १ राजधानी में वीरशासन-जयन्ती [२९ अापक यहां गमन गाहस्थिक कार्य जनविधिस जैन विद्वानों इस समारोहका आयोजन तो उनकी अपेक्षा हमें करना द्वारा सम्पन्न किये जाते हैं । अागे अापने बनाया कि मैंने चाहिये था । इसके सिवा बा० छोटे लालजीके विषयमें आपके इन गुणों को देख कर ही बोरमेयामन्दिरक शिलान्याम बहुमान्यना- व्यंजक अपने गम्भीर हृदयोद्गारोंको व्यक्त के लिए अापसे निवेदन किया था, न कि आर्थिक सहायता करते हुए आग्विरमें यह भी प्रकट किया कि आज कल बा. उद्देश्य से । जब-जब मैंने अापके समक्ष किमी संस्था या छोटलालजी अपना सब कारोबार छोडकर निरन्तर साहित्य क्रिकी महायता करनेका प्रस्ताव रग्बा. अापनं उस हमेशा गधनामें लग रहे है। और उनके भाई बा. नन्दलालजी पृग किया है। आपने यह भी बतलाया कि माह मा० के भी कारोबार छोर चुके हैं, यह कोई साधारण बात नहीं है, आन-द्वारा न केवल जैन किन्तु जैनेतर संस्थाएं भी पल्लविन माह मा० ने लाला राजकृष्णजीकी प्रशंसा करते हुए कहा हो रही है। श्राप लाग्यों रुपये दान कर चुके है और आपका कि आपने धवलादि ग्रन्थोंको जीर्णोद्धारके लिये दिल्ली 'दानकोप भी लाग्योका है जिसमें कवल मेरे नाम पर ट्रष्ट. मंगानेका जो प्रायोजन किया है वह प्रशंसनीय है। अब श्राप के दम लाग्य रुपये है। इन मय यातीका अनुभव मुझे विगन हमें लाला राजकृष्ण जो का जगह पण्डित राजकृष्णजोके रूप २० वर्षोक निकट सम्पयंसे हुआ है। आप कोट्याधीश और में दिखाई दे रहे हैं। उदार होते हुए भी यायन्न मग्ल और निम्र है। आप अपने भाषणके अन्नमें मा० माह ने वीरसेवामन्दिरके भाग्नवी व्यापारियोंका सबसे बटी प्रतिनिधि संस्था (फेड महान कार्योका उल्लम्ब करते हा उमके नवीन भवन-निर्माण रंगन ग्राफ इगिनयन चम्बर्म और कोमर्म एगद इगडस्ट्रीज) के लिये ११०००) २० प्रदान करनेकी घोषणा की । इस पर के सभापति रह चा है। तदनन्तर श्री मुन्नार मा० ने म्बर्गचत 'महावीरमश बाब छोटलालजीन बड़े होकर कहा कि आपका सहयोग नामकी कविता पटी, जिमन सबको यानंद-विभोर कर दिया। हमने श्रापर गुणोंस प्राकृप्ट होकर शिलान्यास लिये चाहा अन्नमें माह माहवन अपना भाषण प्रारम्भ करते हुए था-यापम आर्थिक सहायताकी याचना नहीं की थी। किंतु बताया कि में श्री मुग्छतागपाहबको अपने बाल्यकालसे जानना जय श्राप स्वयं उदारता पूर्वक दही रहे हैं तो हम आपसे है। गगमोकार मन्त्रक पश्चात प्रथम मैन आपके द्वारा कम क्या लं? अनाव हम तो थापसे पहली मंजिलक रचित 'मेरी भावना' को योग्खा था। मुख्तार मा० की जैन निर्माणका पूरा म्बर्च लगे। इस पर माह मा० ने अपनी माहित्य और इतिहास सम्बन्धी सेवाणे महान हैं, जैन समाज महर्ष स्वीकृति प्रदान की और उपस्थित जनताने हर्ष वनिक अापकी अमन्य सेवाओं लिए सदा ऋणी रहगा । याज माथ श्रापक हम दानकी सराहना की। समारोहका जिक्र करने हा अापने कहा कि मैं नो कलकत्ता अन्तमें लाला राजकृष्णजीने पवको धन्यवाद दिया। कुछ वर्षो मे ही रह रहा हूँ पर अमल में मेग घर नी नजीबा- नपश्चान माह मा० ने मंगलगान और जयध्यनिके मध्य बाद है, जो कि दिल्ली बहुन समीप है। कलकत्ता बहुत अपने कर कमलोग शिलान्याम तथा चौग्वट-स्थापना की विधि दर है और बाब छोटेलाल जी यहां रहने वाले हैं इसलिए सम्पन्न की । सम्पादकीय १. नव वर्षारम्भ श्रापाठी पूर्णिमाको होना है। इसी में आषादी पूर्णिमाक दिन __इस किरणम अनेकान्नका १३वा वर्ष प्रारम्भ होता है, भारनमें जगह-जगह अगले वर्षका भविष्य जाननेके लिये जिसका अादि श्रावमा और अन्त श्रापाढका महीना होगा। ज्योनिष श्रीर निमिनशास्त्रोंके अनुसार पवन-परीक्षा की भारतवर्षमें बहुत काल व्यतीत हुआ जब वषका प्रारम्भ जानी थी। जो श्राज भी प्रचलित है । पावनी पाषादीके श्रावण कृष्ण प्रनिपटास माना जाना था, जो वर्षा ऋतुका रूपमें किसानोंका फसली माल भी उसी पुरानी प्रथाका पहला दिन है वर्षाऋतु प्रारम्भ होनेके कारण ही माल द्योतक है, जिसे किसी समय पुनराम्जीवित किया गया है। (sear) का नाम 'वर्ष' पड़ा जान पडना है, जिसका अन्त श्रावण कृष्ण प्रतिपदास वर्ष प्रारम्भ सूचक कितने ही

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