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किरण १]
रत्नराशि
विम्युशर्माकी टि मुनिराजको प्राकृति पर अचल वर्षीय भटका हुमा पालक माताके चरणाम लोटने हो रही थी। मुनिराजमाल-विष्णु ! क्या सोचते हो? लगा हो। नृष्णा कमा शान्त नहीं होती। वह अग्निकी ज्वालाओंकी प्रारमा न जाने कबसे मारिमक पिपामामें भटक रहा भांनि वैभवका धन पाकर और भो भदकतो है। यही । मोहकी मृगतृष्णामें जजका प्राभास पाते ही सोचना नो वह कुमाना है जो अशान्ति द्वेष, घृणा और अहंकार है-सुग्यो है, तृप है। पर समीपतामें बढ़ती है निराशा, का सन्तानको जन्म देती है। पवित्रामा बनका अतृप्ति और अशान्ति । "फिर मांहकी व्यर्थताके बाद प्रयाम करां जिमके मामने संमारकी विभूतियाँ व्यर्थ प्रामा हननी म्वच्छ हो जाती है, जैसे दर्पण । उमं वह हो जाता है। मादीकी भांति मोहका ताना-बाना पूर द्वार दिमाई देने लगता है, जिसमें सीमा तोदकर मारमा कर उमीमें अपने आपको न उलझायो। माह-ग्राहक अनीम होकर प्रवेश करती है। यागीने ज्ञानको कुनओस कठोर दान संमार-ममुद्र की गहराई में प्रारमाको ग्वीच प्रान्मा कपाट खोल दिये थे । विष्णुशर्मा अपने आपमें ले जाते है. तब मामाका उद्धार युगोंके लिए कठिन अमामताका आभाम पाकर गद्गद हा उठा पर। बन जाता है।
चमकते हुए पापाण जिन्हं पानक लिए संसार विष्णु शर्माक प्रज्ञानकी दीवार धीरे-धीरे टूटने लगी। पागल है जहां तहां विवर पडे है ! भाज वे इतने अर्थहीन वह मुनिराजके परणाम इस प्रकार लोटने लगा जैसे हो चले जसं प्यास बुझने के बाद पानी।
राजधानी में वीरशासन -जयन्ती
और वीरमेवामन्दिर-नूतन-भवनके शिलान्यासका महोत्सव
भारतकी गजधानी दिल्ली (१ दरियागंज) में श्रावण कम्पनी, चौ. धनगजजी, ला. पक्षालालजी अग्रवाल, श्री कृष्ण प्रतिपदा मं० २०११ ना. १६ जुलाई 'मन १६ ४ रघुवर दयाल जी, पं० अजिनकुमारजी, ५० दरबारीलालशुक्रवारको प्रातःकान बजे बजे नक सुप्रसिद्ध उद्योगपनि जी, पं० यावृलाल जी, पं. मन्नूलालजी, लाला जुगलदानवार माह शान्तिप्रसादी जन कलकत्नाकी अध्यननामें किशोर जी कागजी, बा. मनोहरलालजी, बा. महताब वीर शापन-जरती जैसे पावन पर्व और वाग्वामन्दिर सिंहजी कील, श्री यशपाल जी, बा. बलवीरसिंहजी, बा. नृनन भवना शिलान्यायका महोन्मत्र व उत्साह और महंशचन्द्र जी एटा, श्री अन्नयकुमारजी श्रादिक नाम उल्लेग्यसमारोह माथ मनाया गया।
नीय हैं। इनके अतिरिक्र मंकडों महिलाएं उपस्थित थी, इस समय श्री 10% मुनि श्रानन्दमागरजी महाराज, जिनमें जयवन्नी देवी, मूरजमुम्बी देवी, मुन्दरबाई, मन्वश्री आणिका वीरमतीजी, मिद्धमनीजी, मुमनिमनाजी, मली देवी, कृष्णादवी प्रादिकं नाम प्रमुम्ब है। वाममती जी, दुल्लिका गुगणमनी जी ज्ञानमतीजी ग्वाम नौर- माह माहब पधारने पर बण्ड बाजेक माथ उपस्थित सं पहाडी धीरज धीर धर्मपुगसं पधारे। अन्य उपस्थिन जनताले उनका स्वागत किया। उन्हें पर्व प्रथम पूजा-मण्डपमज्जनोंमें टी. एन. रामचन्द्रन ज्वाइण्ट डायरेक्टर जनरल में ले जाया गया, जहाँ पर प्राचार्य जुगलकिशोरजी, पं. पुरानच, डा. मोती चन्द्रजी अध्यक्ष-नेशनल म्यूज़ियम, हीरालाल जी, पं. मुमेमचन्द्रजी, पं० परमानन्दजी और पं० दिल्ली, ला. तनमुम्बगयजी, ग. मा. उल्फनरायजी, राज- मिठुनलाल जी द्वारा पूजन-हवनका कार्य सम्पम किया जा वैद्य महावीरप्रसादजी, ला. रघुवीरसिंहजी जनावाच- रहा था। माहीन पृजन-इवनमें भाग लिया और -