Book Title: Anekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 350
________________ अहम Mithi क्वि विश्वतत्व-प्रकाशक वार्षिक मूल्य ) BHBEHENDSHRIMECHHRSHSEBERIES एक किरण का मूल्य ॥) ammamumansmi नीतिविरोधध्वंसी लोकव्यवहारवर्तक सम्यक् । परमागमस्यबीज भुवनेकगुरुर्जयत्यनेकान्त वर्ष १३ । किरण१ वीरसेवान्दिर, १ दरियागंज, देहली श्रावण वीर नि० संवत २४८०, वि. संवत २०११ जुलाई समन्तभद्र-भारती देवागम देवागम-नभोपान-चामरादि-विभूतयः। मायाविषपि दृश्यन्ते नातस्त्वमसि नो महान ॥१॥ बीजिन!) देवोंके आगमनके कारण - स्वर्गादिकके देव मापके जन्मादिक कल्याणकोंके अवसर पर आपके पास पाते हैं इसलिए-, आकाशमें गमनके कारण-गगनमें विना किमी विमानादिका महायताके प्रापका सहज स्वभावरी विवरण होता है इस हेतु-और चामरादि विभूतियों के कारगा-वर, छुच, सिंहापन, देवदुन्दुभि पुष्पवृष्टि अशोक वृक्ष, भामण्डल और दिव्यध्वनि से अष्ट प्रातिहार्योंका तथा समवमरण की इमरी विभूतियोंका श्रापके अथवा आपके निमित्त प्रादुर्भाव होता है इसकी वमहसे-आप हमारेमुझ जैसे परीक्षा - प्रधानियोंके-गुरु-पूज्य अथवा श्रामपुरुष नहीं है-भले ही मामाजके दूसरे बोग या अन्य लौकिक जन इन देवागमनादि अतिशयोंके कारया भापको गुरु, पूज्य अथवा भास मानते हों। क्योंकि ये अतिशय मायावियों में -मम्करि-पूर गादि इन्द्रजालियों में-मी देखे जाते हैं। इनके कारण ही यदि पाप गुरु, प्रया प्राप्त होतो मायावो इन्द्रजालिये मी गुरु, पूज्य तथा प्राप्त करते हैं; जब कि वे वैसे नहीं है। अत: उक्त कारण-कलाप व्यभिचार-दोषसे दूषित होने के कारण बनेकान्तिक हेतु है. इसमे आपकी गुरुता एवं विशिष्टनाको पृथक रूपसे अक्षित नहीं किया जा सकता और न दूसरों पर इसे स्थापित ही किया जा सकता है। (बदि यह कहा जाय कि उन मायावियोंमें ये अतिशय सरचे नहीं होते-बनावटी होते है और आपके साथ इनका सम्बन्ध है तो इसका नियामक और निर्णायक कौन! प्रागमको यदि नियामक और निर्यावक

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