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वादीचन्द्र रचित अम्बिका कथासार
(श्री अगरचन्द्रजी नाहटा)
जैन तीर्थकरों के साथ शासनदेव देवियोंका अधिष्ठापकके पत्रोंकी प्रति जो रचना समयकी ही प्रतीत होती है। रूपमें कबसे सम्बन्ध स्थापित हुमा, निश्चिततया नहीं कहा भट्टारक मेरूपन्द्र शिष्य महकीर्तिसागरके द्वारा प्रति जा सकता, क्योंकि इस सम्बन्धमें जैसी चाहिए शोध नहीं लिखित है। हुई है। प्राचीन जैनागमोंमें तो इसका कहीं उल्लेख एक पंच षकांक, वर्षे नमसि मासके। देखनेमें नहीं पाया । अतएव यह देवी देवियोंका सम्बन्ध मुदास्फाची कथा मेला, वादीचन्द्रो विदावर। अवश्यही पीछेसे जोड़ा गया है। अधिष्ठायक शासनदेवीके
से इति श्री अम्बिका क्या समास रूपमें जिन देवियोंका सम्बन्ध है उनमें सबसे प्राचीन शायद उपयुक्त अम्बिका कथाका सार इस प्रकार है:अम्बिका देवी है। पीछेसे तो इसे नेमीनाथकी अधिष्ठायक
____ भारतके सौराष्ट्र प्रान्तके जूनागढ़के राजा भूपाल थे। देवी मानली गई है पर प्राचीन मूर्तियोंके अध्ययनसे वह
उनकी रानीका नाम कनकावती था । इस नगरी में राज्य सभी तीर्थंकरोंकी मनदेवी प्रतीत होती है। इस देवीकी
पुरोहित सोमशर्मा रहता था । जो कुलीन होने पर मिथ्यास्वतन्त्र प्रतिमाएं भी काफी मिलती है और स्तुति स्तोत्र
दृष्टि था इसकी अग्निला नामकी बुद्धि मति पत्निी थी, वह भी अम्बिका देवीके बहुतसे पाये जाते है।
जैनधर्मानुयायी थी। पति शैव और स्त्री जैन । इस श्वेताम्बर जैन जातियोंमें से प्राग्वाट-पोरवाद जातिकी धार्मिक भेदके कारण कुछ बैमनस्य रहना स्वाभाविक या कुल देवी ही अम्बिका है। विमनवसई में इस देवीकी देव
एक वार पितृ श्राध्यके दिन सोमने ब्राह्मणोंको निमन्त्रित कुलिका है ही, पर अम्माजीके नामसे जो प्रसिद्ध सर्व साधा
किया संयोगवश प्राक्षणों के मानेसे पूर्वही जैन मुनि शान सागर रण तीर्थ है वह भी श्राबूसे दूर नहीं है। पोरवाई जातिकी
जी उसके घर भिक्षार्थ पधारे, अग्निजाने हर्ष पूर्वक उन धनी वस्ती भी इसी प्रदेशके पास-पास रही है। अतः उस
प्रासुक बहार दिया । मुनि महारकर रैवताचबकी गुफामें जातिकी कुलदेवी अम्बिकाका होना सकारण है।
धर्म साधन करने लगे। इधर किसी इालु मामायने श्वेताम्बर साहित्यमें तो अम्बिकाका जीवनचरित्र कई अनिलाको मनिको प्रहार देते देखा था उसने निमंत्रित ग्रन्थों में पाया जाता है। सुप्रसिद्ध प्रभावक चरित्रके विजयसिंह
आता है। सुप्रसिद्ध प्रभावक चरित्रक विजयसिंह ब्राह्मणों के समक्ष द्वेष खुखिसे उसे अनौचित्यपूर्ण बतलाया। सरि चरित्रमें अम्बिकाकी कथा प्रसंगवश दी गई है। इस ब्राहमणोंक भोजनसे पूर्व मुनिको प्रहार दिया गया। इसलिए अन्धकी रचना सम्बत् ११३४ में हुई है। पुरातन प्रबन्ध
ब्राह्मण बिना भोजन किये ही गाली देते दुए ले गये। संग्रह में भी देख्या प्रबन्ध मिलता है।
सोमशर्मा निमन्त्रित ब्राह्मणोंको इस तरह भूखे जाते देख लोक भाषा-प्राचीन राजस्थानीमें रचित वीं शता- अग्निला पर कुपित हुभा । वह उसे मारने को दोबा इससे ब्दीकी एक अम्बिका देवी चौपई भी मुझे १५वीं शताब्दी- भयभीत होकर अग्निता अपने शुभंकर विभंकर दोनों पुत्रों की पूर्वाई की लिखित प्रतिमें प्राप्त हुई है। अतः उसका को एक कमर में और एक को हृदय में लेकर रैवताचनको मध्यका एक पत्र नहीं मिलनेसे रचना श्रुटित हो गई है। चली। वहां ज्ञानसागर मुनि विराज रहे थे। उन्हें नमस्कार
दिगम्बर समाजमें अभी तक अम्बिकाकी कथा संबंधी कर बैठ गई । मुनिने उससे भय-भीत होने का कारण पूजा कोई स्वतन्त्र रचना ज्ञात मी। दो वर्ष हुए मेरा भतीजा पर बतलाने पर कुखद पतिकी निन्दा होगी जानकर मवरखाल देहलीसे बीकानेर पा रहा था, तब लखनऊके भी न कहा। श्रीपूज्यजी विजयसेनसूरि और यति रामपालजीके पास इधर उसके पुत्र पुधावश रोने लगे । वहाँ वह उन्हें अम्बिका कथाको प्रति उसके देखने में आई। कथा संस्कृत क्या देवदी चिन्ता हुई। पर इसी समय मुनि दानके पुरुष भाषामें १ से ३ श्लोकोंमें दी हुई है। संवत् १६५के प्रसादसे निकटवर्ती भान हर प्रकासमें ही फोंसे परिपूर्व भावन मासमें वादीचन्दने इस कथाकी रचना की है। इसके हो गया। उसकी जुम्बिकाएँ नीचे बटको भागी। जिनमें पके