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अनेकान्त
[ वर्ष १३
तैलाद्रक्ष जलाद्रक्ष रक्ष शिथिल बंधनात् ।
३ सम्बत १६६१ वर्षे भादवा वदि ३ शुक्रे श्रीमूलया परह तगतां रक्ष एवं वदति पुस्तिका ।। १०
सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे श्रीकुन्दकुन्दाचार्यान्वये भ. भग्न पृष्टि कटिग्रीवा एक दृष्टि रधोमुखम् । श्री मकलकीर्तिदेवास्तदन्वये भ० वादिभूषणदेवास्ताप भ. कप्टेन लिखितं शास्त्रं यत्नेन परिपालयेत ॥ ११ गमकीर्तिदेवास्तन्पट्ट भ. पननन्दितदाम्नाये श्री गुर्जरदेश यादृशं पुस्तके दृष्टं तादृशं लिखित मया ।
श्रीसूरत बन्दरे श्री वासुपूज्यचैत्यालये हुंबडज्ञातीय माह यदि शुद्धमशुद्ध वा ममदोषो न दीयते ॥ १२॥ श्री सन्तोषी भ्रातः माह जीवराज तयोः जननी आर्यिका वाई
-पटन भण्डारस्थित धर्मशर्माभ्युदयलिखित प्रशस्ति करमा नया स्थविराचार्य श्री नरेन्द्रकीर्तिस्तरिछप्य ब्रह्म श्री
२ मम्बत् १५६० स्वस्ति श्री मन्स्वसमयपरममयमकल लाड्यका तच्छिप्य अमीकामराज जयपुरणं लिखाप्य दत्तं । विद्याकाविनवादिवृन्दारिकवेदितः पदद्वन्द्व श्रीमत् कुन्दकुन्दा इन प्रशस्तियों के अतिरिक्र अन्य अनेक प्रशस्तियां हंबड चार्यवर्यान्वयं श्री मरस्वनिगच्छ बलात्कारगणे भट्टारक श्री ज्ञाति द्वारा प्रतिलिपि कगए गए ग्रंथोंकी मौजूद हैं जिन्हें ज्ञानभूषणदेवाः तच्छिष्याचार्यवयं श्रीनिर्गन्थविशालकीर्तिदवाः यहाँ लेख वृद्धिक भयस छोडा जाना है उन्हें फिर किसी तच्छिप्या लघुविशालकीर्तयः श्री मज्जिनधर्मध्यान धनधान्या- अवसर पर प्रकट किया जाएगा। दिभिरनिसुन्दरे गन्धारमन्दिरे हुंबडवंशे श्रावक परभाइया श्वताम्बर सम्प्रदायमें भी हुंबड वंशकी अवस्थिति रहो कीका तस्य भार्या वाऊ तयोः पुत्री माणिकवाई तस्या पुत्री हैं। यद्यपि उनकी संख्या अल्प भले ही हो । पर उनके यहाँ चगाई तत्र प्रशस्त सम्यक्त्वधारी दयाकरी ममस्तजीवेषु मन्दिरमूर्तियोंके निर्माण कर्ता और ग्रंथ लिग्वानेक रूपमें सुकुलजाति मुन्दरी दानादिक म्ब मनानुकारिणी माणिक्य- प्रमिन्द्वि रही है। सम्बन १९६२ में हुम्बड वंशी ईलक बाई वरवृत्तिधारिणी तया सद्भावनापूर्व लेखयिन्वेदमुत्तमं श्रावकने सवृत्तिकावश्यकसूत्रको लिखवाया था। और जिसे गोमटसार पंजिका पुस्तकं मुदादत्तं लघुविशालकीतिभ्यः महराजने लिखा था। यह ग्रन्थ पाटनके सङ्घची पाढा ज्ञानकर्मछित्तए, प्राप्तये मुक्रि सम्पतेः सुखम्बानः पुनः स्फुटमिति ॥ भंडारमें सुरक्षित है।
पण्डित और पण्डित-पुत्रोंका कर्तव्य
(श्री क्षुल्लक सिद्धिसागर) जैन पण्डितोंके पाम जैन भण्डार या अन्यत्रसे शिन कोई ग्रन्थ उनके पास हो तो वे उसकी सूचना प्राप्त जैन शास्त्र (हस्त लिखित) भी रहते हैं । पिता मरम्वनी भवन या अन्य किमी संस्थाको भेजदें कि पण्डित होते हैं तो पुत्र पण्डित नहीं भी होते हैं । जो अमुक-अमुक ग्रन्थ हमारे पास हैं । अप्रकाशित माहित्य अप्रकाशित अमूल्य प्रन्थ घरमें रहते हैं प्रायः असाव- नष्ट न हो इसके लिये सुव्यवस्था शीघ्र करें । बहुत , धानी होने पर नष्ट हो जाते हैं । अच्छा तो यह है सा साहित्य अप्रकाशित और जीर्ण होता जा रहा है। कि वे उन अप्रकाशित ग्रन्थोंको जैन सरस्वती भण्डार- मूल ग्रन्थोंके गुच्छक यदि प्रकाशित हो जावें तो में या जैन मन्दिर में विराजमान करदें। जिससे कि वे थाड़े खर्च में अनेक ग्रन्थोंका संरक्षण हो सकेगा और सुरक्षित रह सकें । पिता जिमकी अमूल्य समझ अपूर्व सामग्री भी अध्ययनको प्राप्त होगी। इस सग्रह करता है पुत्र उसके महत्वको न समझ कर मोह- योजनाको सफल बनाने के लिये पण्डित गण और के कारण उसे नष्ट होने देता है या प्रकाशमे नहीं धनिक वर्ग समर्थ है । विलम्ब करने पर अनेक ग्रन्थ आने देता है या उसका सद् उपयोग नहीं करता है नष्ट हो जावेंगे फिर उन पंक्तियोंको निर्माण न कर या उमे रहीमें या अन्यका बेंच देता है तो यह श्रुतके सकेंगे । मंदिर या मूर्तिके नष्ट हो जाने पर उसका प्रति अन्याय है। अल्प-लाभके लोभमें पड़ कर ग्रन्थ- निर्माण हो सकता है किन्तु जो आर्ष वाक्य नष्ट हो को नष्ट होने देना उचित नहीं है। पण्डितोंको चाहिये जाते हैं उनका बनाना आप के बिना संभव कैसे हो कि वे अपने दिवंगत होनेसे पहिले उनकी व्यवस्था सकता है। दुर्लभ बाह्य वस्तु आर्ष है उसकी पाहले करदें या मन्दिर में विराजमान कर दें। यदि अप्रका- रक्षा करें पुनः शेष की।