Book Title: Anekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 282
________________ किरण निरतिवादी समता ३-विशेष मानसिक काम करने वाले और साधारण अतिविषमतासे हानियां शारीरिक काम करनेवाले यदि समान सुविधा पायें तो मान- अतिविषमताकी हानियोंसे हम परिचित ही हैं। हावा सिक श्रम शीण होगा। मानसिक श्रमका काम करनेवाले किये हानियां प्रतिसमताके बराबर नहीं हैं फिर भी को पाव भर घी की जरूरत होगी और शारीरिक श्रम करने काफी हैं। वालेका काम आध पाव घी से चल जल जायगा । दोनोंको एक आदमीको गुणी सेवक होते हुए भी जब निर्गुण बराबर दिया जाय तो मानसिक श्रमवाला उचिन श्रम न प्रसेवकोंसे कम मिलता है तब उसके साथ अन्याय होता कर पायगा। है। इससे उसका ध्यान गुण बढ़ाने और सेवा करनेसे हटकर ४-एक आदमी पूरी जिम्मेदारीसे काम करता है, उन चालाकियोंकी तरफ चला जाता है जिनसे अधिक धन चारों तरफ नजर रखता है, दिनरात चिन्ता करता है, दूसर- खींचा जा सके। एक भी चालाक बदमाश आदमी जब धनी को ऐसी जिम्मेदारीसे कोई मतलब नहीं । दोनोंको पारि- बन जाता है तब यह कहना गहिये कि वह सौ गुणी और श्रमिक दिया जाय तो जिम्मेदारी रखनेवाला उस तरफ ध्यान सेवकों की हत्या करता है। अर्थात् उसे देखकर सौ गुणी न देगा । इस प्रकार कामकी मारी ब्ववस्था बिगड़ जायगी। और सेवक व्यक्ति गुण सेवाके मन्मार्गसे भ्रष्ट होकर चालाक ५-एक आदमीमें अपने क्षेत्रमें काम करनेके लिये बदमाश बननेकी कोशिश करने लगते हैं। भले ही वे सफल अमाधारण प्रतिभा है, असाधारण स्वर या सन्दरता है. हा या न हो। असाधारण शनि है, असाधारण कला है, इनका असाधारण समाजमें जो बेकारी है, एक तरफ काम पड़ा है दूसरी मूल्य यदि न दिया जाय नो इन गुणोंका उपयोग करनेके तरफ सामग्री पड़ी है तीसरी तरफ काम करनेवाले बेकार लिये उन गुणवालोंका उल्माह ही मर जायगा । इसका मनो बैठे हैं, यह सब अतिविषमताका परिणाम है। इस प्रकार वैज्ञानिक प्रभाव ऐसा पडेगा कि इनका सदुपयोग करनेके को यह अति-विषमता भी काफी हानिप्रद है। लिये जो थोडी बहुत साधना करनेकी जरूरत है वह साधना हमें अतिसमता और अतिविषमताको छोड़कर निरतिभी मिट जायगी। वादी समताकी योजना बनाना चाहिये। उसके सूत्र ये हैं। -हर एक व्यक्रिको भोजन वस्त्र और निवासकी ६--प्रतिममता का मारे समाज पर बहुत बुरा प्रभाव उचित सुविधा मिलना ही चाहिये । हां, इस सुविधाकी पड़ेगा। मारा समाज दुःखी अशान्त निकम्मा और मगहाल जिम्मेदारी उन्हींकी ली जा सकती है जो समाजके लिये हो जायगा । कामका या अपने मूल्यका विवेक किसी में न रहेगा। हर आदमी को यही चिन्ता रहेगी कि मुझे बगबर उपयोगी कार्य उचित मात्रामें करनेको तैयार हों। २-देशमें बेकारी न रहना चाहिये । देशब्यापी एक मिलता है या नहीं? दूसरोंको क्या मिला और मुझे क्या ऐसी योजना होना चाहिये जिससे हर एक व्यक्रिको काममें मिला इसी पर नजर रखने और चिन्ता करने में और झगड़ने लगाया जा सके। में हर एककी शक्ति बर्बाद होगी । विशेष योग्यतावाले विशेष काम न करेंगे और हीन योग्यतावाले बराबरीके लिये ३-ज्यायोचित या समाजमान्य तरीक्से जिसने जो सम्पत्ति उपार्जित की है उस पर उसकी मालिकी रहना दिनरात लड़ेंगे, थोड़ासा अन्तर रहेगा तो असन्तुष्ट होकर चाहिये । बिना मुवावजे की वह सम्पत्ति उससे ली न जा चोरी करेंगे, बदमाशी करेंगे, कृतघ्नताका परिचय देंगे विनय की हत्या करेंगे। इस प्रकार सारा समाज अनुत्साह, ईर्ष्या, सके। -साधारणतः ठीक आमदनी होने पर भी जो अपखेद, मुफ्तखोरी, चोरी, अविनय, आलस्य, कृतघ्नता, कलह, व्ययी या विलासी होनेसे कुछ भी सम्पत्ति नहीं जोड़ पाता अयोग्यता, असाधना, आदिसे भर जायगा, उत्पादन चौपट उसकी गरीबीको दयनीय न मानना चाहिये। हो जायगा, अव्यवस्था असीम हो जायेगी। ५-निम्नलिखित आठ कारणोंसे पारिश्रमिक या पुरअतिसमता जितनी मात्रामें होगी ये दोष भी उतनी म्कार अधिक देना चाहिये । (१) गुण (२) साधना मात्रामें होंगे। इस प्रकार अतिसमता अर्थात अन्याय्य समता (३) भ्रम (४) सहसाधन (१) कष्ट संकट (६) उत्पादन सर्वनाशका मार्ग है। (७) उत्तरदायित्व (5) दुर्लभता।

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