Book Title: Anekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 223
________________ १०४] अनेकान्त [वर्ष १३ अन्त भाग सोरठ देसु सुहावणउ बहु मंगल सादो, जइ दुज्जण मुंह वंका, तो हम एहु सहाउ। घरि घरि गावइ कामिणी णं कोमल नादो। जे जिण सासण लीणा, ते हम करहु पसाउ॥४० अन्त भाग: इनकी दूसरी कृति 'बारह मामा' है जिसका प्रादि अंत काठसंघ मुणि कुमदचंदु इहु रासु पयासइ, भाग निम्न प्रकार है: भणतहं गुणतहं भवियणह धरि संपइ होसइ । आदि भाग-- णेमिणाथ कउ रासु एहु जो परिकरि गावइ, पलिंगिवई जेठ दुइजण करहिं मोहर बाता। जाण तणउ फलु होइ तासु जो जिणवर भावइ । चइतिहिं चित्तु उमाहिट पिय चालहु जिण जाता ॥ इनकी दूसरी कृति 'जोगी आर्या' नाम की है जिसका आदि अन्त भाग इसप्रकार है :अन्त भाग आदि भाग :धनि जननी धनि बापु जेण सुह लक्खण जाइ। धणि कणि पुत्तहं पागली धनि जिनलाइ ॥१२ हउ जोगी जिनमारग जोगी मुभगुरु 'विमल मणिंद, माथुर संघह तिमिरु विहंडइ भविय कुमुदसिरिचंदू ॥१ बोन्हणदे गुण आगली फागुण पूनी आसा। ज्ञान-खडग करि रइवरु जीता पंच महावत लीता, बंभयारि कवि ऊदू गाए बारह मासा ॥१३।। पंच मारि दिदुआसणु कीना, सील-कछोटा कीता ।। सरणावली-यह एक छोटी सी रचना है जिसमें चतु अन्त भाग:विंशतितीर्थकरोंको स्तुति की गई हैं। इसके कर्ता कवि माहण- . सम्यग्दर्शन पाथडी-इसका पादित भाग निम्न है:पाल है। उक्र कृति परस इनका कोई परिचय उपलब्ध नहीं ३ श्रादि भाग घत्ताहोता। इसका प्रादि अन्त भाग निम्न प्रकार है भव-भय निरणासणो सिवपय सासणो कुणय 'सरणुसरणुसिरिरिसहजिणिंदा, मरुदेवी नाभिनरेसरनंदा ' विणासणु सुहकरणे । दसण सुपवित्तउ, मलसु चयत्तउ अजितसरण महु तेरे पाय पइपहु जीते विषम कषाय । तजि एकु दीसइ सरणे ।। संभवसामि सदा तव सरणु, हउंपायउ तह मारिउ मरणु सम्मादसणु सह सम निहाणु, सम्मादसणु अह अभिनंदन सरणागत राखे मुझहि मुकतितियको तिमिरमाणु । सम्मा दंसणु तव-वय-पहाणु, सम्मादसणु मुहु दावहि॥ भव-उहि जाणु ॥ अन्तभागअणुदिणु भणहु भवियधरि आउ यह हह भयभंजण:- अन्त भाग: उत्पाउ। ण एयहिं तित्तिकयाई वि जाय, जिणेसर एवहि साहणपालभणइकरजाडि, वियहं सरणु बहोड़ि वहोड़ि तुम्हह पाय । णियस्थि विमएिगउ अप्पउ धएणु, घउअह-निसु सरणु रहहु हो पाइ, यह कीरति गुणकीरति- गइ दुक्खह पाणिउ दिएणु। जगत्तय सामिय दुल्लह पाई। बोहि, दुहक्खउ उत्तम देहि समाहि ॥ घत्ता-पइवंदहि यशोधर पाथड़ी-इम पाथदी का रचयिता कौन है अप्पर गिदहि, जेणरवियलिय भव-दुहए । दुरिय यह रचना पर से ज्ञात नहीं होता। इसमें सिर्फ दो कडवक डझतो हंसु समन्भई, कणकित्ति सासुय सुहई॥२ हैं, यह रचना अपभ्रंश भाषा की है। आणंदा विधि-इसके कर्ता कवि महानन्दिदेव जान नेमिनाथरासा-इस रचनाके कर्ता मुदचन्द्र काष्ठा पड़ते हैं। इस रचनामें ४३ पद्य दिये हैं जो धारमसम्बोधनकी संधी है। इसमें भगवान नेमिनाथका गुन गान रासेमें किया। स्प्रिट को लिये हुए हैं । उसका आदि अन्त भाग इस गया है। उसका भादि पन्त भाग निम्न प्रकार है:- । प्रकार है :मादि भाग: आदि भागपहले पणमउ नेमिनाहु सरस घणिहि वासो, चिदाणंदु साणंदु जिणु सयल सरीरह सोइ । सामल बरण सरीरु तासु बहु गुणह सहासो। महाणंदि सो पूजियइ आणंदा गगन मंडलु थिरु होइ

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