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अनेकान्त
[वर्ष १३
इय कज्जें अएणहि कहिमि ताम,
परन्तु हरिषेण कथाकोशके निम्न पथमें उनका निर्वाण पुरिमेल्लिवि गच्छह जन्त जाम । होना बतलाया है। जो विचारणीय है। गय एम कहे वि तो जयवरेण, नाना दंशोपसर्ग तं सहित्वा मेरुनिश्चलः। मुणि भणिय एम वि ज्जुच्चरेल ।
विद्युच्चरः समाधानानिर्वाणमगमद्र तम ।।७।। लइ जाहु पमेल्लहु एह यत्ति,
परन्तु अपने जम्बूस्वामिचरितमें कवि राजमलजीने तो तेहि चविउ परिगलिउ रत्ति।
सर्वार्थसिन्हिमें जाने का ही उल्लेख किया है। वीहतह कोकिर धम्मलाहु,
इस चरित्रग्रन्थकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उवसग्ग सणु साहूण साहु।
जम्यू स्वामीकी नवपरिणीता चारों पत्नियां-कमलश्री, इय वयणु दिढव सव्वे वि थक्क, निक्कंपिर निवमु करिवि थक्कु ।
कनकश्री, विनयश्री, और रूपश्री, कथा प्रसंगसे भी जम्बू.
स्वामीको राग उत्पन्न करनेमें समर्थ नहीं हो सकी, और संजाय रबणि मसिकसण पह, अंधारिय दसदिसि कूरगह
इसमें आधी रातका समय व्यतीत हो गया। नगरमें घूमता गयणंगगुयहिएक्काहमिलइ, खयकालसरिमु जगुरुमुगिलइ 3
हुआ विद्यु स्चर चोर जम्बूस्वामीके घर पहुंचता है, जम्बू समुद्धाइया ताम भिउडी कराला,
कुमारकी माता शिवदेवी उस समय तक सोई नहीं थीं। कपालेसु पसरंत कीलाललीला।
उसने विद्यु चरसे जम्बूके वैराग्यकी बात कही, तब विद्यु श्वरसमुल्ला लवंता महा मासखंडा
ने उसके सामने यह प्रतिज्ञा की कि वह या तो जम्बूकुमारके स-धूमग्गि पसुक्क फेक्कार चंडा।
हृदयमें विषय-रति उत्पन्न कर देगा, और नहीं तो स्वयं
उसके साथ दीक्षा ले लेगा । जैसा कि उसके निम्न वाक्यसे गलाबद्ध कंकालवेयाल-भूया । कयाणेय दुप्पिच्छ वीहत्थरूपा ।
प्रकट है:थिया केवि मसिया लहुं वडयमारणा,
बहु वयण-कमल-रसलंपुड भमरु कुमारु ण जद्द करमि। तहा मंकुणा केवि कुक्कड पमाणा।
आएण समाणु विहाणए तो तब चरणु हविसरमि।।१६ रिसोणं सरीराण बाउं पउत्ता,
अर्थात् वनों वदन कमलमें कुमारको रस लंपट-भ्रमर सहंताण ते वेयणं जोयचत्ता।
यदि नहीं करूं तो मैं भी इसीके समान प्रातः काल पर्य पंति दुक्खं सहेङ गरिह
तपश्चरण ग्रहण करूंगा। अहो तप्पलं के कत्थेव दिव।
ग्रन्थकी दशवी सन्धीमें जम्बू और विद्यु च्चरके कई अधीरातो केवि मुणिणो अयाणा,
मनोहर पाख्यान हुए है, परन्तु उनसे भी जम्बू कुमारके तणुकुंडयं ताव राया पलाणा ।
वैराग्यपूर्ण हृदयमें रागका प्रभाव अंकित नहीं हो सका है। सरे केवि कूवम्मि बीया हु वासि,
उममें जम्बूने विषय-भागोंको निःसार बतलाया और विद्यविवरणा पडेऊण तरुवेल्लियासि ।
रचरने वैराग्यको निरर्थक बतलानेका भारी माहस किया है ठिओ नवर विजुच्चरो जो बलीणो,
पर वह जम्बूको अपने कथनसे आकर्षित करने में किसी तरह महाघोर उवसग्ग सग्गे श्रदीणो।
भी समर्थ नहीं हो सका, और उसके साथ ही दीक्षा लेनेके पत्ता
लिये विवश हुआ । इस तरह ग्रन्थका चर्चित कथन बदाही सरणासु चउव्विहु संगहे विवयखग्गे मोहवइरिवडेवि। मार्मिक और अत्यन्त रोचक बन पड़ा है, यह कविकी संठिउ राहण सुद्धमणु एक्कल वीरु इंदियदवरण ।।२६ आन्तरिक विशुद्धताका ही प्रभाव है।
(संधि १०) ग्रन्थ रचनाको महत्ताइस घोर उपसर्गको सहकर विद्य च्चर महामुनि समाधि ग्रन्थकी रचना किसी भी भाषामें क्यों न की गई हो, मरण द्वारा सर्वार्थ सिद्धिको प्राप्त करते हैं।
परन्तु उस भाषाका प्रौद विद्वान कवि अपनी आन्तरिक