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लिये हुए हैं, बाल-ब्रह्मचारी हैं। वे रात दिन ज्ञानाभ्याम और ३००० के ग्रन्थ थे। कुचामन शास्त्र-भण्डारकी सूचीका प्रात्मध्यानमें लीन रहते हैं। ऐसे विद्वान तुललकके वहाँ रहने कार्य भी आपसके मन-भेदके कारण स्थगित हो गया है। पर भी वहांकी जनता उनस ज्ञानार्जनका लाभ नहीं उठाती। जैन समाजकी यह लापर्वाही जैन संस्कृतिक लिए अत्यन्त अस्तु समाजकी लापर्वाहीसे जो ग्रन्थ ग्वगिद्धन हो गए है घातक है | प्राशा है समाज और समाजके नेतागण इस तरह उनका पूर्ण होना कठिन है, अतः वहांको समाजको चाहिए कि । श्रत सम्पत्तिको विनष्ट हार से बचानका यत्न करें। पर वहांके वह उक्र क्षुल्लकजीक निर्देशानुसार उन अपूर्ण ग्रन्यों को जयपुर जैनियोंका इस श्रुत सम्पनिको विनष्ट हो जाने पर भी कोई या वीरमवा मन्दिर दहलीम भिजवा दें. जिम उनका बंद नहीं है। उन्हें समाजकी इम शूनसम्पत्तिक नष्ट करनेका संरक्षण हो सक। हम तरह ममाज का लापवाहास ग्रन्थ क्या हक था ? इस संबन्धमें ममाजक मान्य नेताओंन भी भण्डागमें महलों ग्रंथ नष्ट हो गए हैं । नरा-वीस पंथक झगडों. कुछ विचार नहीं किया । में भी मारोठका ग्रन्थभहार विनष्ट हो गया है. जिसमें लगभग
-परमानन्द जैन
वीर मेवान्दिरके मुरुचिपूर्ण प्रकाशन (१) पुरानन-जनवाक्य-सूची-प्राकृनक प्राचीन ६४ मृल-ग्रन्थाको पद्यानुक्रमणी, जिसके साथ ४८ टीकादिग्रन्यामें
उद्धन दृमर पद्योंकी भी अनुक्रमणी लगी हुई है । सब मिलाकर २१३५३ पद्य-वाक्योकी सूची। संयोजक और
सम्पादक मुख्तार श्रीजुगलकिशोरजी की गबंपणापृा महत्वकी ७० पृष्ठ की प्रतावनाम अलंकृत, डा. कालीदास नागर एम. ए. डी. लिट् के प्राक्कथन ( nod) और डा. ए. एन. · उपाध्याय एम. ए. डी. लिट की भूमिका (Introduction) में भूपिन है. शोध-ग्वाजकं विद्वानों के लिये अतीव उपयोगी, बडा साइज,
जिल्द । जिसकी प्रस्तावनादिका मूल्य अलगम पांच रुपये है) (२ आप्न-परीक्षा-श्रीविद्यानन्दाचायकी म्बापज मटीक अपूर्वकृति,श्राप्तांकी पगेना द्वारा ईश्वर-विषयके सुन्दर
परम और मजीव विवेचनको लिए हा न्यायाचार्य पं. दरबारीलालजी के हिन्दी अनुवाद नथा प्रस्तावनादिसे
युक्त, जिल्द। (३) न्यायदीपिका-न्याय-विद्याकी मुन्दर पाथी, न्यायाचार्य पं. दरबारीलाल जीक सम्वृनटिप्पण, हिन्दी अनुवाद,
विस्तृत प्रस्तावना और अनेक उपयोगी परिशिष्टाम अलंकृत, जिल्द । ... (४) म्वयम्भून्नात्र-- समन्तभद्रभारतीका अपूर्व ग्रन्थ, मुख्तार श्रीजुगलकिशारजीक विशिष्ट हिन्दी अनुवाद छन्दपार
चय. समन्तभद्र-परिचय और भक्तियोग. जानयोग तथा कर्मयोगका विश्लेषण करती हुई महत्वकी गवेषणापूर्ण
१०६ पृष्टको प्रम्नापनाम मुशाभिन । (५) तृतिविद्या-म्बामी समन्तभद्रकी अनोग्बी कृति, पापांक जीननकी कला, मटीक, मानुवाद और श्रीजुगलकिशार मुग्नारकी महन्वकी प्रस्तावनादिम अलंकृत सुन्दर जिल्द-हित ।
" ॥) (६) अन्यान्मकमलमानगड-पंचाध्यायीकार कवि गजमलकी सुन्दर श्राध्यात्मिक रचना, हिन्दीअनुवाद-सहित
और मुख्तार श्रीजुगलकिशोरकी ग्वांजपूर्ण ७८ पृष्ठको विस्तृत प्रस्तावनाम भृषिन । (७) युक्त्यनुशासन-तत्वज्ञान परिपूर्गा समन्तभद्की असाधारण कृति, जिसका अभी तक हिम्दी अनुवाद नहीं हुअा था। मुख्तारश्रीक विशिष्ट हिन्दी अनुवाद और प्रस्तावनादिल अलंकृत, जिल्द ।
१) (८) श्रीपुरपाश्वनाथम्नात्र-प्राचार्य विद्यानन्दरचित. महत्वकी स्तुनि, हिन्दी अनुवादादि महिन। ... ॥) (E) शासनचतुम्निशिका-(तीर्थपरिचय)-मुनि मदनकीनिकी १३ वी शताब्दा की मुन्दर रचना, हिन्दी अनुवादादि-हित ।
ज्यवस्थापक 'वीरसंवामन्दिर-ग्रन्थमाला' वीरसेवामन्दिर, जैन लाल मन्दिर, चाँदनी चौक देहली।