________________
१८
अनेकान्त
[वर्ष १०
आपकी विद्वत्ताका पता तो रायमल्लके लिये श्रावककी एवं श्वेताम्बर विद्वानके साथ दि० श्रावक चित उपयुक्त ग्रन्थसे भी लगता है आपके कितने की आदर भावनाका सन्दर आदर्श हमें राजमल्लके अच्छे एवं आशु कवि थे यह भी इनके रचनाकालके छंदोविद्या पद्मसुन्दरजीके ग्रन्थ त्रय उपस्थित करते निर्देशसे ही मिद्ध होता है। मं०१६१४ के कातिक है । आज तो इस आदर्शको अपनानेकी बड़ी सुदी५को आपने 'भविष्ठत्तकथा' की रचना की भारी आवश्यकता है।
और मं०१६१५ के जेठ मदी ५ को रायमल्लाभ्युदय अब पार्श्वनाथचरित्रकी रचना एवं लेखनकी प्रन्थ बना डाला और कुछ महीनोम ही मं० १६१५ प्रशस्ति दीजाती है। इसकी नकल पालणपुर भंडारसे के मार्गशीर्ष शुक्ला १४ को पाश्वनाथकालन भी करके भेजने की कृपा पूज्य बुद्धि मुनिजी महाराजने रचा गया अर्थात १ वर्ष भी पूरा नहीं हो पाया कि की है एतदर्थ मैं आपका आभारी हूँ। आपने ३ ग्रन्थों की रचना कर डाली । आपके अन्य
पार्श्वनाथ चरित्र ग्रन्थों का उल्लेग्व मैं अपने पूर्व लेग्वमें कर चुका हूँ,
श्रादि-विशुद्ध सिद्धांत मनंतदर्शनं, उमके पश्चात् “राजप्रश्नीय नाट्य पदभंजिका"
म्फुरच्चिदानंद महोदयोदितम् । नामक एक और ग्रन्थ बीकानेर स्टेटकी अनुप
विनिद्रचंद्रोज्ज्वलकेवलप्रभ, मंस्कृत लायब्र रीमें उपलब्ध हुआ है।
प्रणामि चंद्रप्रभतीर्थनायकम् ॥१॥ सम्राट अकबरसे इतना गहरा सम्बन्ध होने पर नमदमकिरीटज्योतिमद्यतेतिमाहिः भी उसकी विद्वन् सभाके मभामदोंकी मची में स्फुरदवगममग्नानंतसंवित्तिलक्ष्मीः । आपका नाम न होना अग्खर रहा है पर मेरे विद्वान
मन इव शुचिदेहं दहवन्सानमंस्तामित्र, डा० दशरथशमाने आइनअकबरी में दीगर
पकलसुखविभून्य चारुचंद्रप्रभोऽयम् ॥२॥ मचीको ध्यानसे पढ़कर इम शंकाका भी निवारण
उग्रायोतकवंशजः शुचिमतिस्तत्वार्थविद्यापटुकर दिया है उनके कथनानुमार आइनेअकबरी
र्यम्याभिज्ञमल्लिकाभिरनिशं गोष्ठी स्फुटं रोचते श्राइन ३० में ( Blockman537-647)२४०
मान्यो राजसभासु सजनसभाशंगारहारो भुवि, विद्वान सभासदांकी मची दीगई है उसमें ३३ हिन्दू
श्री जैनेंद्रपदहयार्थनिरतः श्रीरायमल्लोऽभवन ॥३॥ थे। उनमे ५ विभाग थे जिनमेस प्रथम विभागमें "परमिन्दर" नाम आ जाता है यह उर्दू लिपिकी
ननाभ्यर्थनयाऽतिथि सविनयं तेजाः पुरः स्थः सतां, विचित्रताके कारण पद्मसुन्दरका बिगड़ा हुआ
मान्यः संपदि पद्मसुन्दरकवि षतर्कसक्रांतधीः
काव्यं श्रीश्रु तपंचमीफलकथा संदर्भगर्भ मम, नाम ही प्रतीत होता है।
श्रत्यर्थ क्रियता सुकोमलमतस्तञ्च दमारभ्यते ॥४॥ ___ जैनइतिहासके लिये यह महत्वपूर्ण बात है कि मम्राट अकबरके पिता और प्रपिता हुमायु एवं
अंत-आनंदोहय पर्वतकतरणे रानंदमेरोगुरोः, बाबरसे भी पद्मसुन्दरजीके प्रगुरू श्रानंदराम सन्मा
शिष्यः पंडित मौलिमणि: श्रीपभमेनगरुः । (?) नित थे एवं आइनेअकबरीमें पद्मसुन्दरजीका नाम
तच्छिष्योत्तमपद्मसुन्दर कविः श्रीपार्श्वनाथाह्वयं,
काव्यंनव्यमिदं चकार सरसालंकार संदर्भितम ।। प्रथमश्रेणीके विद्वानों में पाया जाता है।
वंशऽप्रोतकनाम्निगोइलमहागोत्र पवित्रीकृती, पद्ममन्दरजीका चौधरी रायमल्लजीसे जो विख्यातो नरसिंहमाधुरभवत्सिहो नराणामिव । धर्म प्रेम पाया जाता है वह भी हमारे लिये अनु- श्रद्धालुर्जिनपादपंकजरतो राज्ञां सदस्सुस्तुतो, करणीय आदर्श है। दिविज्ञानके माथ श्वेताम्बर दानाज्ञातृशिरोमणिः सुकृतिनामग्रेसरः सम्मतः ।।४।।