Book Title: Andhere Me Ujala
Author(s): Saralyashashreeji
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh Prakashan

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Page 13
________________ प्ररोचना अहिंसा एक नैतिक शिरोमणि प्रत्यय है, जो धर्म और समाज दोनों को आलोकित करता है। अध्यात्म जगत में वैयक्तिक सर्वोच्च उपलब्धि (मुक्ति) में अहिंसा की अनन्य भूमिका स्वीकृत है। सामाजिक अमन-चैन एवं शांतिपूर्ण विकास में अहिंसा का योगदान नकारा नहीं जा सकता। अहिंसा का विविधोन्मुखी अन्वेषण और विकास आदि काल से गतिमान है। इसके विकास क्रम में विभिन्न दर्शनों में योगदर्शन, बौद्ध दर्शन एवं जैन दर्शन की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। ऋषि-महर्षियों, संत-महन्तों, आचार्यों ने जीवन में समरस बनाकर इसे प्राणवान् बनाया है। पाश्चात्य धर्म-दर्शन एवं विद्वानों की सोच अहिंसा सिद्धांत की स्वीकृति से रिक्त नहीं है। ___ 'सव्वभूय खेमंकरी' अहिंसा का विराट् स्वरूप है। इसमें प्राणीमात्र के क्षेम-कुशल की अद्भुत शक्ति है। यह देश-काल की सीमाओं से मुक्त एक शाश्वत सत्य का प्रतीक है। अहिंसा की दिव्यता और विशिष्टता को सत्यापित करने वाली भगवान् महावीर की आर्ष वाणी आगमों में गुंफित है। प्रश्नव्याकरण सूत्र में अहिंसा को आधार और त्राण के रूप में स्वीकृति मिली- 'एसा सा भगवई अहिंसा जा सा भीयाणं विव सरणं, पक्खीणं विव गमणं । तिसियाणं विव सलिलं, खुद्दियाणं विव असणं। समुद्दमज्झे व पोयवहणं, चउप्पयाणं व आसमपयं, दुहट्टियाणं व ओसहिबलं, अडवीमज्झे व सत्थगमणं।' अहिंसा की शक्ति के रूप में प्रतिष्ठा एवं इसके मौलिक अर्थ की मीमांसा उजागर हुई। अहिंसा का अर्थ प्राणों का विच्छेद न करना, इतना ही नहीं, उसका अर्थ है-मानसिक, वाचिक और कायिक प्रवृत्तियों को शुद्ध रखना। अहिंसा के निषेधात्मक स्वरूप के साथ इसके विधेयात्मक स्वरूप को उजागर करना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। हिंसा-अहिंसा किसी निर्धारित रूप और कृत्य के नाम नहीं है। मानव की गति और उसके विकास को यदि बर्बरता से सह अस्तित्व यानी हिंसा से अहिंसा की दिशा में न स्वीकारें तो मानवता का इतिहास शून्यता के गर्त में विलीन हो जायेगा। सर्वोच्च अहिंसा का स्वरूप अदृश्य होकर भी प्राणवान् सिद्ध होता है। जिसका प्रभाव पूरी दुनिया के लिए शकुन है। बीसवीं-इक्कीसवीं सदी के शिखर पुरुष-महात्मा गांधी और आचार्य महाप्रज्ञ ने मंथन पूर्वक अहिंसा को आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुत किया। अहिंसा के सनातन सिद्धांत को वैज्ञानिक कसौटी पर (xi)

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