Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 04
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi

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Page 41
________________ पापकथा हिता // 77 // न प्रतिक्रान्तिवैयर्थ्य, तीर्थकृद्गुरुसंस्तवात् / व्रतोदितेः समायाादात्मखरूप- 12 आगमो. संस्मृतेः // 78 / किं चाढयमेतनिदे-नानुबोभूयते किल / परावर्णेन तल्लेशस्तत्तत्राचं निकाचितम् // 79 // I गुणग्रहणद्वारककृति- | प्रतीच्छ्यो न विधेयोऽसौ, यो जुगुप्सेत माग्गुरुं / भ्रष्टमप्यात्मना मिथ्या-वर्णे तर्हि कथैव का ? // 8 // KI सन्दोहे . मातुर्वप्तुः शुद्धविद्यापदातु-राचार्याणां -पाठकानां श्रुतानां ! वैयावृत्त्ये व्यापूतानां मुनीनां, कुर्यात्स्मृत्यांत शतकम् // 32 // म निन्दकः श्रेष्ठतां नो // 81 // दोषेक्षिणे न कुरुते ऽर्थकयां धनाढयो, धो कथां गुरुमुखो- . ASI ऽपरकार्यकारी / कौटुम्ब्यपीह सुखदुःखकथां विचित्रां, लीनो भवेत्कथमसौ . परमाप्तमार्गे ? // 82 // ISI योग्याद् गुरो-विन्दति वाङ्मयंनो, सङ्गं न कुर्युर्व्यवहारिणस्तैः / नावर्णवक्त्रा क्रियते तपःस्थिती, रिक्तं l चतुर्थ इह निष्फलो ना (तुर्ये स किं वीक्षत आत्मनोऽन्ते) 1 // 8 // मृत्योः काले सविधमटति कोन्व वर्णोदितीनां, दत्ते पथ्यं विविध रटति योगबुद्धानयानां / सर्वैनित्यं विहितविविधराटिदुःखोज्वलानां, स्मृत्वा | भव्याः सुचिरमटत सज्जनानां भणित्याम् // 84 // स्मृतोऽधिकार्यागमवाचने नो, क्षेत्रादिप्रेक्षाकरणेपि | नैव / ग्लानोपचारे गणसङ्घकार्ये, यतः खलः कुत्र भवेद्विनेयः (सनेयः) // 85 // अवर्णवादिनो वर्ण-श्रवणे स्यात् / | (वर्णश्रूते ऽन्यस्य) शिरो व्यथा। प्रियंकरो यथा खक्खा-ऽऽलापेन विपिनेऽवसत् // 86 // कर्म बघ्नीत बोधिघ्न महदादेवज्ञया / अटत्यनन्तं संसारं तेनाऽवर्णब्रुवो भवे // 87 // ज्ञानदर्शनसम्पन्न-चैत्यसङ्घमुनीश्वरान् / / | निन्दन् ज्ञानादिवधक, कर्म बध्नाति बाधकम् // 88 // लोके लोकोत्तरे मार्गे, यतनाः पिशुनस्य याः।। सामान्येनेरिता बद्धा, विशेषः श्रुत ईक्ष्यताम् // 89 // प्राप्यतेऽहन्नमस्कृत्या, तीरं संसारखारिधेः / ज्ञाना- IA // 32 // याप्त्या तथाऽवणे, बध्यते पातकं महत् // 9 // ध्रुवत्वमात्मरूपित्व-मव्याबाधसुखेशितां / सिद्धस्तुतेरेत्य- TA वर्णे, बध्यते पातकं महत् // 91 // विद्यागुरोः स्तुतेः साध्या, मन्त्राश्च विविधा भुवि / तादृशानामवर्णेन, IMPP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trus

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