Book Title: Agamiya Suktavalyadi
Author(s): Sagaranandsuri, Anandsagarsuri
Publisher: Jain Pustak Pracharak Samstha

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Page 9
________________ श्री आवश्यकस्य सूक्तानि आगमीया सूक्तावले श्री FEEEEH REE VRIBE ३८ नेह लोके सुखं किञ्चिच्छादितस्यांहसा भृशम् । मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवह मंगलं ॥ (४०७) मितं च जीवितं नृणां, तेन धर्म मतिं कुरु ॥ . (३९९) ४७ उवओगदिट्टसारा कम्मपसंगपरिघोलणविसाला । ३९ इंदियविसयकसाए, परीसहे वेयणा उवस्सग्गे। ___ साहुकारफलवई कम्मसमुत्था हवइ बुद्धी ॥ (४१६) एए अरिणो हंता अरिहंता तेण चुच्चंति ॥ ४८ अणुमाणहेउदिद्रुतसाहिया वयविवागपरिणामा । ४० अट्टविहंपि य कम्मं अरिभूअं होइ सव्वजीवाणं ॥ हिअनिस्सेअसफलवई, बुद्धी परिणामिआ नाम ॥ (४२७) तं कम्ममरिं हंता अरिहंता तेण बुच्चंति ॥ ४९ निव्वाणसाहए जोए, जम्हा साहति साहुणो।। ४१ अरिहंति बंदणनमंसणाई अरिहंति पूअसकारं । समा य सब्बभूएसु, तम्हा ते भावसाहुणो ॥ (४४९) सिद्धिगमणं च अरिहा अरहंता तेण बुच्चंति ॥ ५० विसयसुहनियत्ताणं विसुद्धचारित्तनिअमजुत्ताणं । ४२ देवासुरमणुपसुं अरिहा पूआ सुरुत्तमा जम्हा । तश्चगुणसाहयाणं सदायकिच्चुज्जयाण नमो ॥ अरिणो हंता रयं हंता अरिहंता तेण वुच्चंति ॥ ५१ असहाइ सहायत्तं करंतिमे संजमं करितस्स । ४३ अरहंतनमुकारो, जीवं मोएइ भवसहस्साओ। एएण कारणेणं नमामिऽहं सव्वसापूर्ण ॥ (४५०) भावेण कीरमाणो, होइ पुणो बोहिलाभाए॥ (४०६)|५२ जीवो अणाइनिहणो तब्भावणभाविओ य संसारे । ४४ अरिहंतनमुकारो, धन्नाण भवक्खयं कुर्णताणं'। खिप्पं सो भाविजइ, मेलणदोसाणुभावेणं॥ (५२१) हिअयं अणुम्मुअंतो विसुत्तियावारओ होइ ॥.. ५३ सब्बाओवि गईओ अविरहिया, नाणदसणधरेहिं । ४५ अरहंतनमुक्कारो एवं खलु पण्णिओ महत्थुत्ति । ता मा कासि पमायं नाणेण चरित्तरहिएणं ॥ (५३२) जो मरणमि उवग्गे, अभिक्खणं कीरए बहुसो ॥ ५४ जम्हा दंसणनाणा संपुण्णफलं न दिति पत्तेयं ।। ४५ अरिहंतनमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणी। चारित्तजुया दिति उ बिसिस्सए तेण चारित्तं ॥ (५३३) ॥७॥

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