Book Title: Agamiya Suktavalyadi Author(s): Sagaranandsuri, Anandsagarsuri Publisher: Jain Pustak Pracharak Samstha View full book textPage 7
________________ श्री- | आवश्यकस्य सूक्तानि अमरनररायमहिलं तित्थयरमिमस्स तित्थस्स ॥ . (६०) । १२ अह वड्डइ सो भयवं दियलोयचुओ अणोवमसिरीओ। आगमीय- ४ त्वद्वाक्यतोऽपि केपाश्चिदबोध इति मेऽद्भतम् । | देवगणसंपरिबुडो नंदाइ सुमंगला सहिओ ॥ भानोर्मरीचयः कस्य, नाम नालोकहेतवः ? ॥ १३ असिअसिरओ सुनयणो बिबुट्टो धवलदंतपंतीओ । सूक्तावली श्री ५न चाङ्गतमुलूकस्य, प्रकृत्या क्लिष्ट वेतसः। वरपउमगम्भगोरो फुल्लुप्पलगंधनीसासो ॥ ॥५॥ स्वच्छा अपि तमसवेन, भासन्ते भास्वतः कराः॥ (६८)|१४ जाइस्सरो अ भयवं अप्परिवडिएहि तिहि उ नाणेहिं । ६ संसारसागराओ उब्वुड्डो मा पुणो निबुड्डिज्जा । ___कंतीहि य बुद्धिहि य अभहिओ तेहि मणुएहिं ॥ (१२६) चरणगुण धिप्पहीणो बुडा सुबहुंपि जाणतो ॥ . (७०)| १५ अमूढलक्खा तित्थयरा । द्धा ७ उवसामं उवणीआ गुणमहया जिणचरित्तसरिसंपि । १६ दुब्भासिएण इक्केण मरीई दुक्खसायरं पत्तो। .. पडिवायंति कसाया किं पुण सेसे सरागत्थे? ॥ भमिओ कोडाकोडि सागरसरिनामधेजाणं ॥ । ८ जह उवसंतकसाओ लहर अणंतं पुणोऽवि पडिवायं । १७ तम्मूलं संसारो नीआगोतं च कासि तिवईमि । ण हु मे बीससियवं थेवे य(ऽयि) कसायसेसंमि ॥ अपडिकंतो मे कविलो अंतद्धिओ कहए ॥ (१७१) ९ अणथोयं वणथोवं अग्गीथोवं कसायथोवं च । १८ जस्स य इच्छाकारो मिच्छाकारो य परिचिया दोऽवि । HTणहु मे वीससियब्वं थेवंपि हु तं बहु होइ ॥ (८३) तइओ.य तहकारोन दुल्लभा सोग्गई तस्स ॥. १० कस्स न होही वेसो अनभुवगओ अनिरुवगारी अ। -१९ एगग्गस्स पसंतस्स न होंति इरियाइया गुणा होंति । अप्पच्छंदमईओ पट्टिअओ गंतुकामो अ॥ ___गंतब्वमवस्सै कारणंमि आवस्सिया होइ । २६५ ११ विणओणएहिं कयपंजलीहि छंदमणुअत्तमाणेहिं । २०.णिहाविगहापरिवजिएहिं गत्तेहिं पंजलिउडेहिं । आराहिओ गुरुजणो सुर्य बहुविहं लहुं देइ ॥ (१००)। भत्तिबहुमाणं पुवं उवउत्तेहिं सुणेयव्वं ॥ 38888804A.ANAPage Navigation
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