Book Title: Agamiya Suktavalyadi
Author(s): Sagaranandsuri, Anandsagarsuri
Publisher: Jain Pustak Pracharak Samstha

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Page 41
________________ श्रीआगमीय - सुक्तावल ॥३९॥ REET 5228888328 ग्र मो (२३-२५) (४६-२-२) ४६ अन्नस्सवि संदेहं दद्धुं कंपंति जा लयाओ व । अबलाओ पगइभयालगाउ रक्खा अओ इत्थी ॥ ४७ जइभागगया मत्ता रागादरीणं तहा चओ कम्मे । रागाइविरयाविहु पायं वत्थूण बिहुरते ॥ ४८ मोहोदरण जाता जीवविउत्तेवि इत्थी देहमि । दिडा दोसपवित्ती किं पुण सजिए भवे देहे ॥ ४९ कम्मं चिति सवसा तस्सुदयंमि उ परव्वसा होंति । रुक्खं दुरुह सबसे दिगलइ स परव्यसो तत्तो ॥ (६९ - २ - १०) ५० कम्मवसा खलु जीवा जीववसाई कहिंचि कम्माई | ( ५९-२-७) कत्थर धणिओ बलवं धारणिओ कत्थई वलवं । (६९-२-१४) ५१ जो जस्स उ उवसामइ विज्झवणं तस्स तेण कायव्यं । जो उ उबेहं कुजा आवजइ मासियं लहुयं ॥ ( ७१-२ -२) ५२ परपत्तिया न किरिया मोपन्तुरठं च जयसु भायडे । अविय उबेहाबुत्ता गुणोवि दोसो हवइ एवं ॥ ( ७२-२-१४) ५३ आय उवउत्ता मा य परमि बावडा होह । हंदि परद्वाउता आयट्ठविणासगा होह || ५४ ताबो मेओ अयसो हाणी दंसणचरितनाणाणं । (७२-१-९) साहुपओसो संसारवणो साहिकरणस्स ॥ (७३-१-८) (७४-१-८) ५५ जह कोहाइविवुडी तह हाणी होइ चरणेवि ॥ ( ७३-२-४) ५६ साहूण पदोसेण य संसारं सोवि बढेइ । ५७ जं अज्जियं समीखलपहि तवनियमबंभमहि । तं दाणि पच्छनाहिसि छतो सागपत्तेहिं ॥ ५८ जं अज्जियं चरितं देसूणापवि पुव्यकोडीए । तंपि कसाइयमित्तो हारेइ नरो मुहुत्तेणं ॥ ५९ आरंभनियत्ताणं अकिणंताणं अकारविताणं । धम्मट्ठा दायव्वं गिहीहि धम्मे कयमणाणं ॥ ६० पाईपलवसत्ता लोभिज्जइ जेण तेण वा इत्थी । अविय टु मोहो दिप्पइ सइरं तासि सरीरेसुं ॥ ( ९०-१-३) प्र ६१ जनऽविय फासुगदव्वं कुंथुपणगाव तहवि दुप्पस्सा | (७४-२-१) (८८-२-४) सं पच्चक्खनाणिणोऽविद्दु राईभत्तं परिहरति ॥ ( ९८-१-६) भा ६२ दोसे चेव विमग्गइ गुणदेसित्तेण निच्चमुज्जुत्ता ॥ ( १३९-१-१५) गः ६३ संपुण्णमेव तु भवे गणित्तं, जं कंखियाणं पविणेंति कखं । 4.44 ± ± 2222 (७३-२-१०) श्री (१४३-२-२ ) ६४ भीरू य किच्चेवऽबला चला य, आसंकितेगा समणी आ ग मो डा वृहत्कल्पस्य सूक्तानि ॥३९॥

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