Book Title: Agamiya Suktavalyadi
Author(s): Sagaranandsuri, Anandsagarsuri
Publisher: Jain Pustak Pracharak Samstha
View full book text
________________ 2. | | बृह. श्री व्यवहारयो आगमीय-श्री लोकोक्तौ घयता कलिना कलिः / (218-2-2) / आकितिमती हि नियमा सेसा हि हवैति ! नो पविसे / (304-1-10) मरणपर्यवसानो जीवलोकः / (231-1-8) / लद्धीओ / (281-1-5) लोके बहुभिरकृत्ये सेवितेऽयं न्यायः शततपोधना अहिरण्यसुवर्णाः (244-2-15) -जाय पितिवसा नारी दत्ता नारी पति- मवध्यं सहमदण्डयं। (311-1-10) अनियाणयं निव्वाण / उघसा / विहवा पुत्तवसा नारी, नत्थि भवसयसहस्सलद्धं जिणवयणं भावो |लोकोक्तयः अनियाणया सेया / (248-2-10) नारी सयंवसा // (304-1-4) जहतस्स / जस्स न जार्य दुक्खं न जायपिय रक्खंती मातपिया सासु- तस्स दुक्ख परे दुहिते // (314-1-11) अथ व्यवहारलोकोक्तयः देवरा दिणं / पितिभायपुत्त विहवं गुरु वृषसागारिकं नीरसमपरो वृषभश्चर्यतृतीयोद्देशके: गणिणी य एव अजंपि // (304-1-7) यति / (316-2-12) मोक्षायैव तत्त्ववेदिनां प्रवृत्तेः (279-2-8) / एगाणिया अपुरिसा सकवार्ड घर परं तु इत्यागमीयलोकोतयः (आगामीयसूक्तावलि 1 सुभाषित 2 संग्रहश्लोक 3 लोकोक्तयः 4) 4 // 74 // 4 4 5FFEREve 4. 4 2 3 भा // 74 // 4 A

Page Navigation
1 ... 74 75 76