Book Title: Agamiya Suktavalyadi
Author(s): Sagaranandsuri, Anandsagarsuri
Publisher: Jain Pustak Pracharak Samstha
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आगमीय
शाताधर्मकथायाः सूक्तानि
सूक्तावली
तथा-हीणगुणो विहु होउं सुहगुरुजोग्गाइजणियसंवेगो। सव्वणवि कोरंतं सहिज सब्बंपि पडिकलं ॥ (१७२) पुण्णसरुवो जायइ विवहमाणो ससहरोब्व ॥ (१७१)/५ मिच्छत्तमोहियमणा पावपसत्तावि पाणिणो विगुणा।। जह दावद्दवतरुवणमेवं साह जहेव दीविच्चा।
फरिहोदगं व गुणिणो हवंति वरगुरुपसायाओ ॥ (१७७) वाया तह समणाइय सपक्खवयणाई दुसहाई ॥
तिरियाणं चारित्तं निवारियं अह य तो पुणो तेसिं । जह सामुद्दयवाया तहऽण्णतित्थाइकलयबयणाई।
सुबह बहुयाणपि हु महव्ययारोहणं समय ॥ कुसुमाइसंपया जह सिवमग्गाराहणा तह उ॥
न महब्वयसम्भाववि चरणपरिणामसम्भयो तेसि । जह कुसुमाइविणासो सिवमग्गविराहणा तहा नेया। न बहुगुणाणंपि जो केवलसंभूइपरिणामो॥ (१८३) जह दीववाउजोगे बहु इड्डी ईसि य अणिड्डी ॥ ७ संपन्नगुणोवि जओ सुसाहुसंसगियजिओ पाय । तह साहम्मियवयणाण सहमाणाऽऽराहणा भवे बहुया। पावइ गुणपरिहाणीं दद्दरजीयो व्य मणियारो॥ इयराणमसहणे पुण सिवमग्गविराहणा थोवा ॥
तित्थयरवंदणथं चलिओ भावेण पाचए. सगं । जह जलहिवाउजोगे थेविड्डी बहुयरा यऽणिड्डी य ॥ जह दहरदेवेणं पत्तं वेमाणियसुरत्तं ॥
(१८४) तह परपक्खक्खमणे. आराहणमीसि बहु इयर ॥
जाच न तुक्खं पत्ता माणभंसं च पाणिणो पायं ।। जह उभयवाउविरहे सव्वा तरुसंपया विणत्ति ॥
ताच न धम्म गेण्हति भावओ तेयलीसुदन ॥ (१९२) अनिमितोभयमच्छररुचे विराहणा तह य॥
चंपा इव मणुयगती धणो देव भयवं जिणो दएकरसो। जह उभयवाउजोगे सव्वसमिड्डी वणस्स संजाया ॥
अहिछत्तानयरिसमं इह निब्याणं मुणेयध्वं ॥ तह उभयवयणसहणे सिवमग्गाराहणा बुत्ता ॥
घोसणया इव तित्थंकरस्स सिवमग्गदेसणमहन्छ । ता पुनसमणधम्माराहणचित्तो सया महासत्तो॥
चरगाइणोव्व इत्थं सिवसुहकामा जिया वह ॥
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॥३॥

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