Book Title: Agamiya Suktavalyadi
Author(s): Sagaranandsuri, Anandsagarsuri
Publisher: Jain Pustak Pracharak Samstha
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आगमीयसूक्तावला
भगवतीज्ञाताधर्मकथयोः सूक्तानि
॥३०॥
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बागरेत्तए जहा णं तुम, तं सुट्ट णं तुम गो० ते अन्न- । उत्थिए एवं वयासी साहू णं तुमं गो० ते अन्नउथिए एवं बयासी।
अथ ज्ञाताधर्मकथासूक्तानि १ उग्गतवसंजमवओ पगिट्ठफलसाहगस्सवि जियस्स ।।
धम्मविसरवि सुहुमावि होइ माया अणत्थाय ॥ जह मलिस्स महावलभवमि तित्थयरनामवंधेऽवि ।
तवविसय थेवमाया जाया जुवइत्तहेउत्ति॥ (१५५) २ जह रयणदीवदेवी तह पत्थं अविरई महापावा
जह लाहस्थी वणिया तह सहकामा इह जीवा ॥ जह तेहिं भीएहिं विट्रो आघायमंडले पुरिसो । संसारदुक्खभीया पासंति तहेव धम्मकहं ॥ जह तेण तेसि कहिया देवी दुक्खाण कारणं घोरं । तत्तोबिय नित्थारो सेलगजक्खाओ नन्नत्तो॥ तह धम्मकही भव्याण साहए दिट्ठअविरइसहायो। मयलदुहहेउभूलो विसया विरयंति जीवाणं ॥ सत्ताणं दुहत्ताणं सरणं चरणं जिणिंदपन्न ।
आणंदरूबनिव्वाणसाणं तहय देसेइ ॥ जह तेसिं तरियब्यो रुद्दसमुद्दो सहेव संसारो। जह तेसि सगिहगमणं निब्वाणगमो तहा एत्थं ॥ जह सेलगपिट्ठाओ भट्टो देवी मोहियमईओ। सावयसहस्सपउरंमि सायरे पाविओ निहणं ॥ तह अविर नडिओ चरणचुओ दुक्खसावयाइपणे। निवडइ अपारससारसायरे दारुणसरूवे ॥ जह देवी' अखोही पत्तो सट्ठाण जीवियसुहाई । तह चरण ठिओ साहू अक्खोही जाइ निव्याणं ॥ १६९ चंदोव्व कालपक्खे परिहाई पर पप, पमायपरो । तह उग्घरबिग्घरनिरंगणोवि न य इच्छियं लहद ॥ १७१ जह चदो तह साहू राहुवरोहो जहा तह पमाओ। वण्णाई गुणगणो जह तहा खमाई समणधम्मो ॥ पुण्णोवि पइदिणं जह हायंतो सव्वहा ससी नस्ले । तह पुण्णचरित्तोऽवि हु कुसीलसंसग्गिमाईहिं ॥ जणियपमाओ साहू हायंतो पइदिणं समाईहिं । जायद नटुचरित्तो तत्तो दुक्खाई पावेद ॥
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॥३०॥
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