Book Title: Agamiya Suktavalyadi
Author(s): Sagaranandsuri, Anandsagarsuri
Publisher: Jain Pustak Pracharak Samstha

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Page 34
________________ 2222222 श्री आगमीय सूक्तावली आ ग ॥३२॥ मो द्धा र‍ स ग्र हे भा 22222 नंदिफलाइ व् इहं सिवपहपडिवण्णगाण विसया उ । तब्भक्खणाओं मरणं जह तह विसपहिं संसारो ॥ तव्वज्जणेण जह इट्ठपुरगमो विसयवज्रणेण तहा । परमानंदनिबंधण सिवपुरगमणं मुणेयब्वं ॥ ( १९५) | । ( २२७ ) (२२७) १० सुबहुपि तवकिले सो नियाणदोसैण दूसिओ संतो न सिवाय दोवतीय जह किल सुकुमालियाजम्मे ॥ ११ अमणुन्नमभत्तीए पत्ते दाणं भवे अणत्थाय । जह कडुयतुंबदाणं नागसिरिभवंमि दोवइए ॥ १२ जह सो कालियदीवो अणुवमसोक्खो तहेव जइधम्मो । जह आसा तह साहू वणियव्वऽणुकूलका रिजणा ॥ जह सद्दाहअगिद्धा पत्ता नो पासबंधणं आसा । तह विसएस अगिद्धा बज्झति न कम्मणा साह ॥ जह सच्छंद विहारो आसाणं तहय इह वरमुणीणं । जरमरणारं विवज्जिय संपत्ताऽऽणंदनिव्वाणं ॥ जह सहाइस गिद्धा बद्धा आसा तहेव बिसयरया । पावैति कम्मबंधं परमासुहकारणं घोरं ॥ जह से कालियदीवा णीया अन्नत्थ दुहगणे पत्ता । १३ तह धम्मपरिष्भट्ठा अधम्मपत्ता इहं जीवा ॥ पार्श्वेति कम्मनरवरवसया संसारवाहयालीए । आसप्पमहपहिं व नेरइयाइहिं दुक्खाई ॥ जह सो चिलाइ पुसो सुंसुमगिद्धो अकजपडिबद्धो । धणपारदो पत्तो महाडविं वसणसयकलियं ॥ तह जीवो विसयसुहे लुद्धो काऊण पावकिरियाओ । कम्मवसेणं पावर भवाडवीए महादुक्खं ॥ धण सेट्ठीदिव गुरुणो पुत्ता इव साहवो भवो अडवी । सुयमंसमिवाहारो रायगिहं इह सिवं नेयं ॥ जह अडविनयरनित्थरणपावणत्थं तपहिं सुयमंसं । भुत्तं तहेह साहू गुरुण आणाऍ आहारं ॥ भवलंघणसिव पावणहेउं भुजंति ण उण गेहीए । वण्णबलरुवहेडं च भावियप्पा महासत्ता ॥ १४ वाससहस्संपि जई काऊणं संजमं सुविउलंपि । अंते किलिट्टभावो न विसुज्झइ कंडरीड व्व ॥ अप्पेणवि कालेणं केइ जहागहियसीललामण्णा । साहिति निययकज्जं पुंडरीय महारिसिव्व जहा ॥ (२४६) (२४२) 328228855s the F (२३४) श्री सं भा 32222222 ज्ञाताधर्म कथायाः सूक्तानि ॥३२॥

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