Book Title: Agam Sutra Satik 10 Prashnavyakarana AngSutra 10
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 25
________________ ३७८ प्रश्नव्याकरणदशाङ्गसूत्रम् १/१/८ जलियगुहनिरंभण उसिणोसिणकंटइलदुग्गमरहजोयणतत्तलोहमग्गगमणवाहणाणि इमेहि विविहेहिं आयुहेहिं किं ते मोग्गरमुसुंढिकरकयसत्तिहलगयमुसलचक्ककोंततोमरसूललउलभिं डिमालसहलपट्टिसचम्मेठ्ठदुहणमुट्ठियअसिखेडगखग्गचावनारायंकणककप्पणिवासिपरसुटंकतिक्खनिम्मलअन्नेहि य एयमादिएहिं असुभेहिं वेउब्बिएहिं पहरणसतेहिं अणुबद्धतिब्बवेरा परोप्परवेयणंउदीरेति अभिहणंता, तत्थय मोग्गरपहारचुण्णियमुसुंढिसंभग्गमहितदेहाजंतोवपीलणफुरंतकप्पिया केइत्थ सचम्मका विगत्ता निम्मूलुलूणकरणोठ्ठनासिका छिणहत्थपादा असिकरकयतिक्खकोतरपरसुप्पहारफालियवासीसंतच्छितंगमंगा कलकलमाणखारपरिसित्तगाढडझंतगत्तकुंतग्गभिण्णजञ्जरियसव्वदेहा विलोलंति महीतले विसूणियंगमंगा, तत्थ य विगसुणगसियालकाकमज्जारसरभदीवियविय्धगसङ्कलसीहदप्पियखुहाभिमूतेहि निच्चकालमणसिएहिं घोरा रसमाणभीमरूवेहिं अक्कमित्ता दढदाढागाढडक्ककड्डियसुतिक्खनहफालियउद्धदेहा विच्छिप्पंते समंतओ विमुक्कसंधिबंधणावियंगमंगा कंककुररगिद्धघोरकट्ठवायसगणेहि य पुणो खरथिरदढणक्खलोहतुंडेहिं ओवतित्ता पक्खाहयतिक्खणक्खविकिनजिब्भंछियनणनिद्धओलुग्गविगतवयणा, उक्कोसंता य उप्पयंता निपतंता भमंता पुब्बकम्मोदयोवगतापच्छाणुसएणडज्झमाणानिंदता पुरेकडाइंकम्माईपावगाइंतहिं २ तारिसाणि ओसन्नचिक्कणाई दुक्खातिं अणुभवित्ता ततो य आउक्खएणं उव्वट्टिया समाणा बहवे गच्छंति तिरियवसहिं दुक्खुत्तरं सुदारुणं जम्मण- मरणजरावाहिपरियट्टणारहट्ट जलथलखहचरपरोप्परविहिंसणपवंचं इमंच जगपागडं वरागा दुक्कं पावेन्ति दोहकालं, किं ते?, सीउण्हतण्हाखु हवे यणअप्पईकारअडविजम्मणणिचभउविग्गवासजग्गणवहबंधणताडणकणनिवायणअट्टभंजणनासाभेयप्पहारदूमणछविच्छेयणअभिओगपावणकसंकुसारनिवायदमणाणि वाहणाणि य मायापितिविप्पयोगसोयपरिपीलणाणि य सत्थग्गिविसाभिधायगलगवलआवलणमारणाणि य गलजालुञ्छिप्पणाणि पओउलणविकप्पणाणि य जावजीविगबंधणाणि पंजरनिरोहणाणि य सयूहनिद्धाडणाणि धमणाणि य दोहणाणि य कुदंडगलबंधणाणि वाडगपरिवारणाणि य पंकजलनिमजणाणि वारिप्पवेसणाणिय ओवायणिभंगविसमणिवडणदवग्गिजालदहणाइ य, एवं ते दुक्खसयसंपलित्ता नरगाउ आगया इहंसावसेसकम्मातिरिक्खपंचेदिएसु पाविति पावकारी कम्माणि पमायरागदोसबहुसंचियाइं अतीव अस्सायकक्कसाई। वृ. 'पुव्वकम्मकयसंचउवतत्त'त्ति पूर्वकृतकर्मणां सञ्चयेनोपतप्ता-आपन्नसंतापा येते तथा, निरय एवाग्निर्निरयाग्निस्तेन महाग्निनेव सम्प्रदीप्ता येते तथा, गाढदुःखां--प्रकृष्टदुःस्वरूपां द्विविधां वेदनां वेदयन्तीति योगः, किंभूतां? - महद्भयं यस्यां सा तथा तां कर्कशां कठिनद्रव्योपनिपातजनितत्वात् असाता-असाताख्यवेदनीयकर्मभेदप्रभवां शारीरी मानसींचतीव्रां-तीव्रानुभागबन्धजनितां पापकर्म-कारिणांः, तथा बहूनि पल्योपमसागरोपमाणि करुणा-दयास्पदभूताः करुणं वा पालयन्ति 'ते'त्ति पूर्वोक्ताःपापकारिणः 'अहाउयंति यथाबद्धमायुष्कं, गाढ्याऽपि वेदनया नोपक्राम्यत इति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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