Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 12 Author(s): Jinendravijay Gani Publisher: Harshpushpamrut Jain GranthmalaPage 23
________________ 6) ( श्रीमदागमसुभासिन्धु: / द्वादशमो विभागः अह सम्बदवपरिणाम-भावविराणत्तिकारणमणंतं / सांसयमप्पडिवाइ, एगविहं केवलरामाणं // 77 // केवलणाणेणथे, गाउं जे तस्थ पराणवणजोग्गे / ते भासइ तित्थयरो, वयजोग सुयं हवइ सेसं // 78 // इत्थं पुण अहिगारो, सुयनाणेणं जयो सुएणं तु।सेसाणमप्पणोऽवित्र, अणुयोगु पईवदिट्ठतो॥७॥ // इति पोठिका // 1 // // अथोपोद्घातनियुक्तिः // - तित्थयरे भगवंते, अणुत्तरपरकमे अमियनाणी / तिगणे सुर.इगइगए, सिद्धिपहपदेसए वंदे // 80 // वंदामि महाभाग, महामुणिं महायसं महावीरं। अमरनररायमहियं, तित्थयरमिमस्स तित्थस्स // 81 // इकारसवि गणहरे, पवायए पवयणस्त वंदामि / सव्वं गणहरवंसं वायगवंसं पवयणं च // 82 // ते वंदिऊण सिरसा अत्थपुजुत्तस्स तेहिं कहियस्स / सुयनाणस्स भगवश्रो, निज्जुत्तिं कित्तइस्सामि // 83 // श्रावस्सगस्स दसकालिअस्स तह उत्तरज्झमायारे / सूयगडे निज्जुत्तिं वुच्छामि तहा दसाणं च // 84 // कप्पस्स य निज्जुत्ति, ववहारस्सेव परमणिउणस्त / सूरिश्रपराणत्तीए, वुच्छं इसिभासिश्राणं च // 85 // एतेसिं निज्जुत्ति, बुच्छामि अहं जिणोवएसेणं / थाहरणहेउकारण-पयनिवहमिणं समासेणं // 86 // सामाइयनिज्जुत्ति, वुच्छं उवएसियं गुरुजणेणं / श्रायरियपरंपरण्ण, श्रागयं प्राणुपुबीए // 87 // निज्जुत्ता ते अत्था, जं बद्धा तेण होइ णिज्जुत्ती (अहवा सुयपरिवाडी सुग्रोवयेसोऽयं विशेषा) / तहवि य इच्छावेइ, विभासिउँ सुत्तारिवाडी // 8 // तवनियमनाणरुखं, श्रारूढो केवली श्रमियनाणी। तो मुयइ नाणबुढेि, भवियजणविवोहण?ए // 81 // तं वुद्धिमएण पडेण, गणहरा गिरिहउं निरवसेसं / तित्थयरभासियाई, गंथंति तयो परयणट्ठा // 10 // चित्तु व सुहं सुहगुण(गह)णधारणा दाउं पुच्छिउँ चेव / एएहिं . कारणेहिं, जीयंति कयं गणहरेहिं // 11 // श्रत्थंPage Navigation
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