Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 12
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ श्रीमती ओपनियुक्तिः } ..... . उकोसो अविहो मज्झिमयो होइ तेरसविहो उ / जहन्नो चउब्विहोवि यतेण परमुवग्गहं जाण॥६७८॥ एगं पायं जिणकप्पियाण थेराण मत्तयो बिइयो / एवं गणणपमाणं पमाणमाणं अश्रो वुच्छ॥६७९॥ तिगिण विहत्थी चउरंगुलं च भाणस्स मन्झिमपमाणं / इत्तो हीण जहन्नं अइरेगतरं तु उकोसं // 680 // इणमगणं तु पमाणं नियगाहाराउ होइ निष्पन्न / कालपमाणपसिद्धं उपरपमाणेण य वयंति // 681 // उक्कोस तिसामासे दुगाउपद्धाणमागयो साहू / चउरंगुलूणभरियं जं पजत्तं तु साहुस्स // 682 // एवं चेव पमाणं सविसेसयरं अणुग्गहपवत्तं / कतारे दुभिक्खे रोहगमाईसु भइयव्वं // 683 // (भा०) वेयावच्चगरो वा नंदोभाणं धरे उवग्गहियं / सो खलु तस्स विसेसो पमाणजुत्तं तु सेसाणं // 321 // दिजाहि भाणपूरंति रिद्धिमं कोवि रोहमाईसु / तत्थवि तस्सुवोगो सेसं कालं तु पडिकुट्ठो // 684 // पायस्स लक्खणमलक्खणं च भुजो इमं वियाणित्ता / लक्खणजुत्तस्स गुणा दोसा य अलक्खणस्स इमे // 685 // वट्टसमचउरंसं होइथिरं थावरं च वरणं च / हुँडं वायाइद्धं भिन्नं च अधारणिजाई // 686 // संठियंमि भवे लाभो, पतिट्ठा सुपतिट्ठिते / निव्वणे कित्तिमारोग्गं, वन्नड्ढे नाणसंपया // 687 // हुँडे चरित्तभेदो सबलंमि य चित्तविन्भमं जाण / दुप्पते खीलसंगणे गणे च चरणे व नो ठाणं // 688 // पउमुप्पले अकुसलं, सव्वणे वणमादिसे / अंतो बहि च दडमि, मरणं तत्थ निदिसे // 681 // अकरंडगम्मि भाणे हत्थो उट्ठे जहा न घट्ट / एयं जहन्नयमुहं वत्थु पप्पा विसालं तु // 610 // छक्कायरक्खणट्ठा पायग्गहणं जिणेहिं पनत्तं / जे य गुणा संभोए हवंति ते पायगहणेवि // 611 // अतरंतबालवुड्डा-सेहाएसा गुरू असहुवग्गे / साहारणोग्गहालिद्धि-कारणा पादगहणं तु // 612 // पत्ताबंधपमाणं
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