Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 12
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ श्रीमती ओघनियुक्तिः ] ( 203 तं सि होइ उवगरणं। अतिरेग अहिगरणं अजतो अजयं परिहरंतो // 741 // उग्गमउपायणासुद्ध, एसणादोसाजियं / उवहिं धारए भिक्खू, पगामपडिलेहणं // 712 // उग्गमउपायणासुद्ध, एसणादोसवजियं / उवहिं धारए भिक्खू, जोगाणं साहणट्टया // 743 / / उग्गमउप्पा. यणासुद्ध, एसणादोसवजियं / उवहिं धारए भिक्खू. अप्पदुट्ठो अमुच्छियो // 744 // अज्झत्थविसोहीए उवगरणं बाहिरं परिहरंतो। अप्परिग्गहीत्ति भणियो जिणेहिं तेलुकदंसीहि // 745 // उग्गमउ'पायणासुद्धं एमणादो वजियं / उवहिं धारए भिक्खू, सदा अज्मथसोहिए // 746 // अझप्पविमोहीए जीवनिकाएहिं संथडे लोए / देसियमहिंसगत्तं जिणेहिं तेलोकदंसीहिं // 747 // उचालियंमि पाए ईरियासमियस्स संकमट्टाए / बावज्जेज कुलिंगी मरिज तं जोगमासजा // 748 // न य तस्स तन्निमित्तो बंधो सुहुमोवि देसियो समर। अणवजो उ पत्रोगेण सव्वभावेण सो जम्हा // 741 // नाणी कम्मस्स खयट्टमुट्ठियोऽणुट्ठितो य हिंसाए। जयइ असद अहिंसत्थमुट्ठिश्रो अवहयो सो उ // 750 // तस्स असंचे. * अयश्रो संचेययतो य जाइं सत्ताई। जोगं पप्प विणस्संति नत्थि हिंसाफलं तस्स // 751 // जो य पमत्तो पुरिसो तस्स य जोगं पडुच जे सत्ता। पावज्जते नियमा तेसिं सो हिंसश्रो होइ // 752 // जेवि न वावज्जती नियमा तेसिपि हिंसयो सो उ। सावजो उ पयोगेण सव्वभावेण सो जम्हा // 753 // श्राप चेव अहिंसा पाया हिंसत्ति निच्छयो एसो। जो होइ अप्पमत्तो अहिं तो हिंसयो इयरो // 754 // जो य पोगं जुजइ हिंसत्थं जो य अन्नभावेणं / अमणो उ जो पउंजइ इत्थ विसेसो महं वुत्तो // 755 // हिंसत्थं जुजतो सुमहं दोसो अणंतरं इयरो। अमणो य अप्पदोसो जोगनिमित्तं च विन्नेयो / / 756 // रत्तो वा दुट्टो वा मूढो वाजं पजइ पोगं। हिंसावि तत्थ जायइ तम्हा सो
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