Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 12
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 222
________________ श्रीमती ओपनियुक्ति [2.5 अन्नदवेगां // 773 // ऊणगसयभागणं किंवाई परिणमंति तभावं / लवणागराइसु जहा वज्जेह कुमीलसंसग्गों // 774 // जीवो अणाइनिहणो तब्भावणभावियो य संसारे / सिप्पं सो भाविजइ मेलणदो ताणुभावेणां // 775 // जह नाम महुरसलिलं सागरसलिलं कमेण संपत्तं / पावइ लोणियभावं मेलणदोसाणुभावेगः // 776 // एवं खु सीलमंतो असीलमंतेहि मेलिनो संतो। पावइ गुणपरिहाणी मेलणदोसाणुभावेणं // ७७७॥णामस्स देसणस्स य चरणस्स य जत्थ होइ उवघातो / वज्जेज. ऽवजभीरू अणाययणवजो खिप्पं // 778 // जत्थ साहम्मिया बहवे, भिन्नचित्ता प्रणारिया / मूलगुणपडिसेवी, अणायतणं तं वियाणा हि // 776 // जत्थं साहम्मिया बहवे, भिन्नचित्ता प्रणारिया / उत्तरगुणपडिसंवी, अणायतां तं वियाणा हि // 780 // जत्थ साहम्मिया बहवे, भिन्नचित्ता श्रणारिया। लिंगवेसपडिच्छन्ना, अणायतणां तं वियाणाहि // 781 // श्राययगांपि य दुविहं दवे भावे य होइ नायव्वं / दव्वंमि जिणघराई भावंमि य होइ तिविहं तु // 782 // जत्थ साहम्मिया बहवे, सीलमंता बहुस्सुया। चरित्तायारसंपन्ना, श्राययणां तं वियाणाहि / / 783 // सुदरजणसंमग्गी सोलदरिदपि कुणइ सीलहुँ / जह मेरुगिरीजायं तगांपि कणगत्तणमुवेइ // 784 // एवं खलु शाययगां निसेवमाणस्स हुज साहुग्स / कंटगपहे व छलणा रागद्दोसे समाज // 785 // दारं / पडिसेवणा य दुविहा मूलगुणे चे उत्तरगुणे य / मूलगुणे छट्ठाणा उत्तरगुणि होइ तिगमाई // 786 // हिंसालिय चोरिक्के मेहुन्नपरिग्गहे य निसिभत्ते / इय छट्ठाणा मूले उग्गमदोसा य इयरंमि // 787 // पडिसेवणा मइलणा भंगो य विराहणा य खलणा य / उवघायो य असोही सबलीकरण च एगट्ठा // 788 // छट्ठाणा तिगठाणा एगतरे दोसु वावि छलिएगां / काव्वा उ विसोही सुद्धा दुक्खक्खयहाए // 786 // बालोयणा उ दुविहा

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