Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 12
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 223
________________ 206 / [ श्रीमदागमसुधासिन्धु द्वादशमो विभागः मूलगुणे चेव उत्तरगुणे य / एक्केका चउकन्ना दुवग्ग सिद्धावसाणा य // 760 // पालोयणा वियडणा सोही सब्भावदायणा चेव / निदण गरिह विउट्टण सल्लुद्धरणांति एगट्ठा // 711 // एत्तो सल्लुद्धरणां वुच्छामी धीरपुरिसपन्नत्तं / जं नाऊण सुविहिया करेंति दुक्खक्खयं धीरा // 712 // दुविहा य होइ सोही दव्वसोही य भावसोही य / दव्वंमि वत्थमाई भावे मूलुत्तरगुणेसु // 713 // छत्तीसगुणसमन्नागएण तेणवि अधस्त कायबा। परसक्खिया विसोही सुट्ठवि ववहारकुसलेगां // 764 // जह सुकुसलोऽवि विजो अन्नस्स कहेइ अप्पणो वाही / सोऊण तस्स विजस्स सोवि परिकम्ममारभइ // 715 // एवं जागांतेणवि पायच्छित्तविहिमप्पणो सम्मं / तहवि य पागडतरयं बालोएतब्वयं होइ // 716 // गंतूण गुरुपकासं काऊण य अंजलिं विणयमूलं / सव्वेण अत्तसोही कायव्वा एस उवएसो // 717 // नहु सुज्झई ससल्लो जह भणियं सासणे धुयरयाणां / उद्धरियमवसल्लो सुज्झइ जीवो धुयकिलेसो॥ 718 // सहसा अण्णाणेण व भीएण व पिल्लिएण व परेण / वसणेणायंकेण व मूढेण व रागदोसेहिं // 711 // जकिं चि कयमकज्जं न हु तं लब्भा पुणो समायरिउं / तस्स पहिक्कमियव्यं न हु तं हियएण वोढव्वं // 800 // जह बालों जपंतो कजमकज्जं व उज्जुयं भणइ / तं तह आलोएजा मायामयविप्पमुक्को उ॥ 801 // तस्स य पायच्छित्तं जं मग्गविऊ गुरू उवइसति / तं तह पायरियव्वं श्रणवत्थपसंगभीएगां // 802 // नवि तं सत्यं व विसं व दुप्पउत्तो व कुणइ वेयालो / जंतं व दुप्पउत्तं सप्पो व पमाइणो कुद्धो॥८०३ // जे कुणाइ भावसल्लं अणुद्धियं उत्तमट्टकालंमि / दुल्लभबोहीयत्तं अशांतसंसारियत्तं च // 804 // तो उद्धरंति गारवरहिता मूलं पुणब्भवलयाणां / मिच्छादसणासल्लं नियाणं च // 805 // उद्धरियसवसल्लो पालोइयनिंदियो गुरुसगासे / होइ अतिरेग़लहुयो श्रोहरियभरोव्व भारवहो // 806 //

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