Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 12
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 214
________________ श्रीमती औषनियुक्तिः ] [19. समयं पवयंती सेसेसु समं व विसमं वा // 658 // इंदियमाउत्ताणं हणंति कणगा उ सत्त उक्कोसं / वासासु य तिनि दिसा उउबद्धे तारगा तिनि // 651 // - (भा०) कणगा हणंति कालं तिपंचसतेव घिसिसिर गसे / उक्का उ सरे. हागा रेहारहितो भवे कणतो // 310 // सव्वेवि पढमजामे दोन्नि उ वसभा उ श्राइमा जामा / तइयो होइ गुरुणं चउत्थश्रो होइ सव्वेसिं // 660 // (भा०) वासासु य तिण्णि दिसा हवंति पाभाइयम्मि कालंमि / सेसेतु सीसु चउरो उमि चउरो चउदिसंपि // 311 // तिसु तिणि तारगा उ उदुमि पाभाइए अदिट्ठऽवि / वासासु अतारागा चउरो छन्ने निविट्ठोषि ___गणासति बिंदूसु गेगहइ विट्ठोवि पच्छिमं कालं / पडियरइ बाहि एको एको अंतट्टिो गिराहे // 661 // पायोसियडरते उत्तरदिसि पुन पेहए कालं / वेरत्तियंमि भयणा पुदिसा पच्छिमे काले // 662 // सज्झायं काऊणं पढमबितियासु दोसु जागरणं / अन्नं वावि गुणंती सुणंति भायंति वाऽसुद्धे // 663 // जो चेव श्र सयणविही गाणं वनियो वसहिदारे / सो चेव इहंपि भवे नाणत्तं नवरि सज्माए // 664 // एसा सामायारी कहिया भे ! धीरपुरिसपन्नत्ता / एत्तो उवहिपमाणं वुच्छं सुद्धस्स जह धरणा // 665 // उवही उवग्गहे संगहे य तह पग्गहुग्गहे पेव / भंडग उवगरणे या करणेऽवि य हुति एगट्ठा // 666 // श्रोहे उवग्गहमि य दुविहो उवही उ होइ नायव्वो / एक्केकोवि य दुविहो गणणाए पमाणतो चेव // 667 // पत्तं पत्ताबंधो पायट्ठवणं च पायकेसरिया / पडलाई रयत्ताणं च गुच्छो पायनिजोगो // 668 // तिन्नेव य पच्छागा रयहरणं चेव होइ मुहपत्ती / एसो दुवालसविहो उवही जिणकप्पियाणं तु // 666 // एए चेव दुवालस मत्तग श्रइरेग चोलपट्टो य। एसो

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