Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 12
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 213
________________ 11) [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / द्वादशमो विभाग वासविज्जुक-गजिए वावि उवघातो // 643 // सन्भायमचिंता कणगं दवा तो नियति / वेलाए दंडधारी मा बोलं गंडए उवमा // 644 // श्राघोसिए बहूहिं सुर्यमि संसेसु निवडइ दंडो। अह तं बहूहिं न सुयं दंडिजइ गंडयो ताहे // 645 // कालो सजा य तहा दोवि समप्पंति जह समं चेव / तह तं तुलंति कालं चरिमदिसं वा अस भागं // 646 // पियधम्मो दधम्मो संविग्गो चेवध्वजभीरू य / खेयन्नो य अभीरू कालं पडिलेहए साहू // 647 // पाउत्तपुब्वभणिए अणपुच्छा खलियपडिय वाचाते / घोसंतमूढसंकिय इंदियविसएवि अमणुन्ने // 648 // निसीहिया नमोकारे काउस्सग्गे य पंचमंगलए / पुब्बाउत्ता सब्वे पट्ठवणचउकनाणत्तं // 646 // थोवावसेसियाए सम्झाए ठाइ उत्तराहुत्तो / चउवीमगदुमपुप्फिय-पुषग एक्केक्यदिसाए // 650 // भासंतमूढसंकिय-इंदियविसए य होइ श्रमणुन्ने / विंदू य छीयपरिणय सगणे वा संकियं तिराहं // 651 // __(भा०) मूढो व दिसऽज्झयणे भासंतो वावि गिण्हह न सुन्झे / अन्नं च दिसज्झयण संकंतोऽणिहविसयं वा // 309 // जो वच्चंतमि विही श्रागच्छतमि होइ सो चेव / जं एत्थं नाणतं तमहं बुच्छ समासेणं // 652 // निसीहिया नमुक्कारं श्रासजावडपडणजोइक्खे। अपमजियभीए वा छीए छिन्नेव कालवहो // 653 // श्रागम इरियावहिया मंगल आवेयणं तु मरु(णं मरुय)नायं / सव्वेहिवि पट्टविएहि पच्छा करणं अकरणं वा // 654 // सन्निहियाण वडारो पट्टविय पमाय नो दए वालं / बाहिटिए पडियरए पविसइ ताहे व दंडधरो // 655 // पट्टविय वंदिए या ताहे पुच्छेइ किं सुयं ? भंते ! / तेवि य कहति सव्वं जं जेण सुयं व दिळं वा // 656 // एकरस दोराह व संकियंमि कीरइ न कीरए तिराहं। संगणंमि संकिए परगणंमि गंतु न पुच्छंति // 657 // कालचउक्के नाणत्तयं तु पादोसियाम सव्वेवि /

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