Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 12
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 211
________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः- द्वादशमो विभागः लाभे सति संघाडो गेराहइ एगो उ इहरहा सव्वे / तस्सऽप्पणो य पजत्त गेराहणा होइ अतिरेगं // 612 // गेलन्ननियमगहणं नाणत्तोभासियंपि तत्थ भवे / योभासियमुबरियं विगिंचए सेसगं भुजे // 613 // दुल्लभदव्वं व सिया घयाइ घेत्तूण सेस भुञ्जति / थोवं देमि व गेराहामि यत्ति सहसा भवे भरियं // 614 // एएहिं कारणेहिं गहियमजाया उ सा विगिचणया। बालोगंमि तिपुंजी(जा) श्रद्धाणे निग्गयातीणं // 615 // एको व दो व तिन्नि व पुजा कीरति किं पुण निमित्तं ?-विहमाइनिग्गयाणं सुद्धेयरजाणणट्ठाए॥ 616 // एवं विगिचिउं निग्गयस्स सन्ना हवेज तं तु कहं / निसिरेजा ? अहव धुवं आहारा होइ नीहारो॥ 617 // थंडिल्ल पुव्वभणियं पढमं निदोस दोसु जयणाए / नवरं पुण णाणत्तं भावासन्नाए वोसिरणं // 618 // (भा०) अणावायमसंलोयं अणावायालोय ततिय विवरीयं / आवातं संलोगं पुव्वुत्ता थंडिला चउरो // 308 // अणावायमसंलोगं निदोसं बितियचरिम जयणाए। पउरदवकुमकुयादी पत्तेयं मत्तगो चेव // 616 // तइएवि य जयणाए नाणत्तं नवरि सहकरणमि। भावासनाए पुण नाणत्तमिणं सुणसु वोच्छं // 620 // जदि पढमं न तरेजा तो वितियं तस्स असइए तइयं / तस्स असई चेउत्थे गामे दारे य रस्थाए // 621 // साही पुरोहडे वा उवस्सए मत्तगंमि वा णिसिरे। अच्चु. कडंमि वेगे मंडलिपासंमि वोसिरइ // 622 // तिरिण सल्ला महाराय ! अस्सिं देहे पइट्टिया / वायमुत्तपुरीसाणं, पत्तवेगं न धारए // 623 // राया विज्जमि मए विजसुयं भणइ किं च ते अहियं ? / अहियंति वायकम्मे विज्जे हसणा य परिकहणा // 624 // एसा परिठ्ठवणविही कहिया भे धीरपुरिसपन्नत्ता / सामायारी एत्तो वुच्छं अप्पक्खरमहत्थं // 625 // सन्नातो थागतो चरमपोरिसिं जाणिऊण श्रोगाढं / पडिलेहणमप्पत्तं नाऊण करेइ

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