Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 12
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 210
________________ श्रीमती ओपनियुक्तिः ] . [193 विजाए होगारी अचियत्ता सा य पुच्छए चरित्रं / अभिमंतणोदणस्स उ श्रणुकंपणमुझणं च खरे // 518 // बारस्स पिट्टणंमि अपुच्छण कहणं च होगारीए। सिट्टे चरियादंडो एवं दोसा इहंपि सिया // 511 // जोगंमि उ अविरइया अझुववन्ना सरूवभिवखुमि। कडजोगमणिच्छतस्स देइ भिक्खं असुभभावे / 600 // संकाए स नियट्टो दाऊण गुरुस्स काइयं निसिरे / तेसिपि असुभभावो पच्छा उ ममापि उज्झयणा // 601 // एमेव विसकयंमिवि दाऊण गुरुस्स काइयं निसिरे। गंधाई विनाए उज्झगमविही सियालवहे // 602 // एवं विजाजोए विससंजुत्तस्स वावि गहियस्स / पाणचएवि नियमुझणा उ वोच्छं परिढवणं // 603 // एगंतमणावाए अचित्ते थंडिले गुरुवइ? / छारेण अकमित्ता तिट्ठाणं सावणं कुजा // 604 // दोसेण जेण दुटुंतु भोयणं तस्स सावणं कुजा / एवंविह वोस? वेरायो मुचई साहू // 605 // जावइयं उवउज्जइ तत्तिमित्ते विगिचणा नस्थि / तम्हा पमाणगहणं अइरेगं होज उ इमेहिं // 606 // अायरिए य गिलाणे पाहुणए दुल्लभे सहसदाणे / एवं होइ बजाया इमा उ गहणे विही होई // 607 // जइ तरुणों निरूवहयो भुजइ तो मंडलीइ पायरियो / असहुस्स वीसुगहणं एमेव य होइ पाहुणए // 608 // सुत्तत्थथिरीकरणं विणयो गुरुपय सेहबहुमाणो। दाणवतिसद्धवुड्डी बुद्धिबलवद्धणं चेव // 606 // एएहिं कारणेहि उ केइ सहुस्सवि वयंति अणुकंपा। गुरुअणुकंपाए पुण गच्छे तित्थे य अणुकंपा // 610 // सति लाभे पुण दव्वे खेत्ते काले य भावों चेव / गहणं तिसु उकोसं भावे जं जस्स श्रणुकंपं(कूलं) // 611 // (भा०) कलमोतणो. उ पयसा उक्कोसो. हाणि कोदव्युभजी / तत्पवि मिउतुप्पतरयं जत्थ व जं अचियं दोसु // 307 //

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