Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 12
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 208
________________ श्रीमती ओधनियुक्तिः ] [ 161 श्रा न कुन अाहारं, छहिं ठाणेहिं संजए / पञ्छा पच्छिमकालंमि, काउं अप्पक्खमं खमं // 581 // ..(भा०) आर्यके उवसग्गे तितिक्खया बंभवेरगुत्तोए। पागदया तवहे सरोरवोच्छेयणड्डाए // 292 // आयंको जरमाई राया सन्नायगा व उपसग्गा / बंभवयपालणट्ठा पाणदया वासमहियाई // 293 // तवहेउ चउत्थाई जाप उ छउम्मासिओ तवो होइ / छह सरोरवोच्छेयणट्ठया होयऽणाहारो // 294 // / एएहिं छहिं गणेहिं, अणाहारो य जो भवे / धम्मं नाइकमे भिक्खू , माणजोगरयो भवे // 582 // भुजंतो श्राहारं गुणोक्यारं सरीरसाहारं / विहिणा जहोवइ8 संजमजोगाण वहणट्ठा // 583 // भत्त(भुत्तु ट्ठियावसेसो तिलंबणा होइ संलिहणकप्पो / अपहुप्पत्ते अन्नपि छोङ ता लंबणे वए॥ 584 // संदिट्ठा संलिहिउँ पढमं कप्पं करेइ कलुसेणं / तं पाउं मुहमासे बितियच्छदवस्स गिगहति // 55 // दाऊण बितियकप्पं बहिया मज्झट्ठियो उ दवहारी / तो देंति तइयकप्पं दोगह दोराहं तु श्रायमणं // 586 // होज सिवा उद्धरियं तत्थ य श्रायंबिलाइणो हुजा / पडिदंसिय संदिट्ठो वाहरइ तो उत्थाई // 587 // मोहचिगिच्छ विगिट्ठ गिलाण अत्तट्टियं च मोत्तूणं / सेसे गंतु भणई पायरिया वाहरंति तुमं // 588 // अाडिहणतो श्रागंतु वंदिउँ भणइ सो उ थायरिए / संदिसह मुंज जं सरति तत्तियं सेस तस्सेव // 581 // श्रभणंतस्स उ तस्सेव सेसो होइ सो विवेगो उ / भणियो तस्स उ गुरुणा एसुवएसो पवयणस्म // 510 // भुतंमि पढमकप्पं करेमि तस्से। देति तं पायं / जावतियुतिय भणिए तस्सेव विगिवणे सेसं // 511 // विहिगहियं विहिभुत्तं अइरेगं भत्तयाण भोत्तव्वं / विहिगहिए विहिभुत्ते एत्थ य चउरो भवे भंगा // 512 // (भा०) उग्गमदोसाइजदं अहवा बीअं जहिं जहापडि। इय एसो गहणविही अमुखपच्छायणे अविही // 295 //

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