Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 12
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 143
________________ NO . [ भीमदागर्मसमातिन् / द्वादशमों विभाग बद्धो काउस्सग्गो हबइ तस्स / / 62 // तिविहाणुवसग्गाणं दिव्वाणं माणुसाण तिरियाणं / सम्ममहियासणाए काउस्सग्गो हवइ सुद्धो // 63 // इहलोगंमि सुभदा राया उदयोद सिट्ठिभजा य / सोदासखग्गथंभण सिद्धी सग्गो य परलोए // 1564 // - (भा०) जह करगओ निकितइ दारु इतो पुणोवि वच्चंतो / इस कंतंति सुविहिया काउस्सग्गेण कम्माई // 237 // / काउस्सग्गे जह सुट्टियस्स भज्जति अंगमंगाई। इय भिदंति सुविहिया अट्टविहं कम्मसंघायं // 1565 // अन्नं इमं सरीरं अनो जीवृत्ति एव कयबुद्धी। दुक्खपरिकिलेसकरं छिंद ममत्तं सरीरायो // 66 // जावइया किर दुक्खा संसारे जे मए समणुभूया / इत्तो दुविसहनरा नरएसु अणोवमा दुक्खा // 67 // तम्हा उ निम्ममेणं मुणिणा उवलद्धसुत्तसारेणं / काउस्सग्गो उग्गो कम्मक्खयट्ठाय कायव्यो // 1568 // काउस्सग्गनिज्जुत्ती समत्ता। // इति कायोत्सर्गाध्ययनम् // 5 // .. // अथ षष्ठं प्रत्याख्यानाध्ययनम् / / पञ्चक्खाणं पञ्चक्खायो पञ्चक्खेयं च पाणुपुबीए। परिमा कहणविही या फलं च आईइ छब्भेया // 1561 // . (मा०) नामं ठवणा दविए अइच्छ पडिसेहमेव भावे य / एए खलु छम्भेया पचक्खाणंमि नायव्वा // 238 // द वनिमित्तं दव्वे दवभूओं व तत्थ रायसुआ। अइच्छापचक्खाणं बंभणसमणा न(अ) इच्छत्ति // 239 // अमुगं दिजउ मज्झं नत्थि ममंतंतु होइ पडिसेहो। सेसपयाण य गाहा पर वाणस्स भावंमि॥२४०॥ नं दुविहंसुअनोसुअ सुयं दुहा पुव्वमेव नोपुव्वं। पुवसुय नवमपुव्वं नोयुवसुयंइम चेव // 241 // नोसुअपञ्चक्खाणं मूलगुणे चेव उत्तरगुणे य / मूले सव्व देसं इत्तरियं आपकाहियं च // 242 // - मूलगुणावि य दुविहा समणाणं चेव सावयागं च / ते पुण विभज्जमाणा पंचविहा इति नापन्या. // 1 // (प्र.)

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