Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 12
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ गोमती औधनियुक्ति / / 171 तिनि य तिनि य एक्कं निसि का पडिच्छे रिक्खे)जा // 353 // . केई एक्केकनिसिं संवासेउं तिहा पडिच्छति। पाउणिय जइण लग्गति छप्पया ताहे धोवेजा // 354 // निव्वोदगस्स गहणं केई भाणेसु अस्इ पडिसेहो / गिहिभायणेसु गहणं ठियवासे मीसित्रं छारो // 355 // गुरुपञ्चरखाणगिलाण-सेहमाईण धोवणं पुव्वं / तो अप्पणा पुवमहाकडे य इतरे दुवे पच्छा // 356 // अन्छोडपिट्टणासु त ण धुवे धावे पतावणं न करे। परिभोगमपरिभोगे छायातव पेह कलाणं // 357 // इट्टग पागाईणं बहुमज्झे विज्जुयाइ निच्छइयो। इंगालाई इयरो मुम्मुरमाई य मिस्सो उ॥ 358 // श्रोदणवंजणपाणग-अायामुसिणोदगं च कुम्मासा / डगलगसरक्खसूई पिप्पलमाई य परिभोगो // 351 // सालयघणतणुवाया अतिहिमंतिदुदिणे य निच्छइयो / ववहार पाय(इ)माई अक्कंतादी य अच्चित्तो // 360 // हत्थसयमेग गंता दइउ अचित्तो बिइय संमीसो। तइयमि उ सच्चित्तो वत्थी पुण पोरिसिदिणेहिं // 361 // दइएण वत्थिणा वा परोयणं होज वाउणा मुणिणो। गेलन्नमि व होजा सचित्तमीसे परिहरेजा // 362 // सव्वो वणंतकायो सञ्चित्तो होइ निच्छयनयस्स / ववहाराउ अ सेसो मीसो पब्वायरोट्टाई // 363 // संथारपायदंडग-खोमियकप्पाइ पीटफलगाई। श्रोसहमेसजाणि य एमाइ पयोयणं तमसु // 364 // बियतियचरो पंचिंदिया य तिप्पभिई जत्थ उ समेति / सट्ठाणे सट्टाणे सो पिंडो तेण कजमिणं // 365 // बेइंदियपरिभोगो अक्खाण ससंख सिप्पमाईणं / तेइंदियाण उद्देहिगाइ जं वा वए विजो // 366 // चरिंदियाण मक्खियपरिहारो श्रासमक्खिया चेव / पंचिंदिअपिंडंमि उ अबवहारी उ नेरइया // 367 // चम्मट्ठिदंतनहरोम सिंगप्रमिलाइच्छगण-गोमुत्ते। खीरदहिमाइयाणं पंचिंदिअतिरित्रपरिभोगो // 368 // सचित्तो पधावण पंथुवदेसे य भिक्खुदाणाई /
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