Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 12
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 186
________________ श्रीमती ओपनियुक्तिः ] [ 166 पडिलेहा / अदूरचक्खुपाए सुहुमतिरिच्छग्गय(च्छागय) न पेहे // 325 / / अचासन्ननिरोह दुवखं दट्ठपि पायसंहरणं / छक्कायविभोरमणं सरीर तह भत्तपाणे य॥ 326 // (भा०) उड्डमुहो व हरत्तो अवयक्खंतो वियवमाणो य / वातरकाए वहए तसेतरे संजमे दोसा // 188 // निरक्वेखो वच्चंतो आवरिओ खाणुकंटविसमेसु / पंचण्ह इंदियाणं अन्नतर सो विराहेजा // 189 // भत्ते वा पागे वा आवडियपडियस्स भिन्नपारा। छक्कायविओरमणं उडाहो अप्पणो हाणी // 190 // दहि घय तक्कं पयमंबिलं व सत्थं तसेतराण भवे / खडमि य जणवाओ बहुफोगे जं च परिहाणी // 191 // - पत्तं च मग्गमाणे हवेज पंथे विराहणा दुविहा। दुविहा य भवे तेणा परिकम्मे सुत्तपरिहाणी // 327 // एसा पडिलेहणविही कहिश्रा . भे धीरपुरिसपत्नत्ता। संजमगुणड्डगाणं निगथाणं महरिसीणं // 328 // एयं पडिलेहणविहिं जुजंता चरणकरणमाउत्ता। साहू खवंति कम्म अणेगभवमंचित्रमणंतं // 321 // पिंडं व एसणं वा एत्तो वोच्छं गुरुवएसणं। गवेसणगहणघासेसणाए तिविहाए विसुद्धं // 330 // पिडस्स उ निक्खेवो चउक्कयो छक्कयो य काययो / निक्खेवं काऊणं. परुवणा तस्स कायबा // 331 // नाम ठवणापिंडो दवपिंडो य भावविंडो य / एसो खलु पिंडस्स उ निक्खेवो चउविहो होइ // 332 // गोगणं समयकयं वा जं वावि हवेज तदुभएण कयं / तं विति नामपिण्डं ठवणापिंडं श्रयो वोच्छं // 333 // अवखे वराडए वा कट्ठ पोत्थे व चित्नकम्मे वा। सम्भावमस-भावा ठवणापिंड वियाणाहि // 334 // तिविहो य दव्वपिंडो सञ्चित्तो मीसश्रो य अञ्चित्तो / अञ्चित्तोय दसविहो सञ्चित्तों मीसश्री नवहा // 335 // पुढवी अाउकाए तेउवाऊवणस्सई चेव / बिअतिथचउरो पंत्रिंदिया य लेवो य दस्मो उ // 336 // पुढविकायो तिविहो सञ्चित्तो

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