Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 12
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 185
________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः द्वादशमो विमामा वुच्छेय पारसगं // 180 // हत्यायाम चउरस्स जहण्णं जोयणे विछवियरं / चरंगुलप्पमाणं जहण्णयं दूरमोगाढं // 181 // दव्वासपणं भवणाइयाण तहियं तु संजमायाए / आयापवयणसंजम-दोसा पुण भावआसपणे // 182 / / होति बिले दो दोसा तसेसु षोएसु वावि ते चेव / संजोगओ अ दोसा मूलगमा होति सविसेसा // 183 // दिसिपवणगामसूरिय-छायाए पमजिऊण तिवखुत्तो / जस्सोग्गहोत्ति काऊण वोसिरे थायमेजा वा // 316 // ___ (भा०) उत्तरपुव्वा पुज्जा जम्माए निसियरा अहिवडंति / घाणाऽरिसा य पवणे सूरियगामे अवण्णो उ॥१८४॥ संसत्तग्गहणी पुण छायाए निग्गयाए वोसि रइ / छायासइ उण्हंमिवि वोसिरिअ मुहुत्तयं चिट्ठ // 185 // . उवगरणं वामे ऊरुगंमि मत्तं च दाहिणे हत्थे। तत्थन्नत्थ व पुंछे तिहि श्रायमणं अदूरंमि // 317 // पढमासइ श्रमणुन्नेयराण गिहियाण वावि पालोए / पत्तेयमत्त कुरुकुय दवं च पउरं गिहत्थेसु // 318 // तेण परं पुरिसाणं असोयवाईण वच आवायं / इत्थिनपुसालोए परंमुहो कुरुकुया सा उ // 311 // तेण परं श्रावायं पुरिसेपरइत्थियाण तिरि. याणं / तत्थवि अ परिहरेजा दुगुदिए दित्तचित्ते य / / 320 // तत्तो इथिनपुंसा तिविहा तत्थवि असोयवाईसु / तहियं तु सद्दकरणं पाउलगमणं कुमकुया य // 321 // अब्बोच्छिन्ना तसा पांणा, पडिलेहा न सुज्झई / तम्हा हट्ठपहट्ठस्स, अवटुंभो न कप्पई // 322 // संचर कुथु. हिश्रलूयावेहे तहेव दाली श्र। घर कोइलिया सप्पे विस्संभर उंदुरे सरडे॥ 223 // (भा०) संचारगा चउदिसि पुन्धि पडिलेहिएवि भन्नेति / उहेहि मूल परणे विराहणा तदुभए भेओ // 186 // ल्याइचमढणा संजमंमि आयाए विच्छुगाईया / एवं घरकोइलिभा अहिउंदुरसरमाईसु // 187 // - अतरंतस्स उ पासा गाद दुक्खंति तेणवट्ठभे। संजयपट्टी-थंभ सेल छाडविट्टीए // 324 // पंथं तु वचमाणा जुगंतरं चक्खुणा व

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