Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 12
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 183
________________ [ श्रीमदागमसुधासन्धुः / द्वादशमो विमान नवगनिवेसे दूराउ उक्केरो मूमरहिं उकिरणो। निद्धमहि हरतणू वा ठाणं भेत्तूण पविसेजा // 211 // कोत्थलगारियवरगं घणमंताणाइया व लग्गेजा। उक्केरं सट्टाणे हरतणु संचिट्ठ जा सुको // 212 // इयरेसु पोरिसितिगं संचिवखावेत्तु तत्तियं हिदे / सव्वं वावि विगिरइ पोराणं मट्टियं ताहे // 213 // पत्तं पमन्जिऊणं अंतो बाहिं सई तु पप्फोडे / कइ पुण तिगिण वारा चउरंगुल भूमि पडणभया // 214 // वि.टेशबंधणधरणे अगणी तेणे य दंडियक्खोभे / उउबद्धधरणबंधण वासासु अबंधणा ठवणा // 215 // ___ (भा०) रयताण भाण धरणा उउबद्ध निविखवेज वासासु / प्रगणोतेणभएण व रायच खोभं विराहणया // 175 // परिगलमाणा होरेज उहणा भंया तहेव छक्कायो / गुत्तो व सयं उज्झे होरेज व जं च तेण विणा // 173 / / वासासु नत्थि अगणो नेव य तेणा उ दंडिया सत्था / तेण अरणा ठवगा एवं पउिलेहणा पाए // 177 // श्रणाशयमसंलोंए अणवाए चेव होइ संलोए। थापायममंलोए श्रावाए चेव संलोए // 216 // तत्थावायं दुविहं सपखपरपक्खयो य रणायव्वं / दुविहं होइ सपक्खे संजय तह संजईणं च // 217 / / संविग्गमसंविग्गा संविग्ग मणुराणएयरा चेव / असंविग्गावि दुविहा तप्पक्खियए अरा चेव // 218 // परपक्खेवि थ दुविहं माणुस तेरिच्छिश्रं च नायव्वं / एक्केक्कंपि अतिविहं पुरिसिस्थिनपुंसगे चेव // 21 // पुरिसावायं तिविहं दंडिन कोडविए य पागइए / ते सोय मोयवाई एमवित्थी नपुंसा य // 30 // एए चेव विभागा परतित्थीणपि होइ मणुयाणं / तिरियाणंषि विभागा अयो परं कित्तइस्सामि // 301 // दित्तादित्ता तिरिया जहराणमुक्कोसमझिमा तिविहा / एमेवित्थिनपुंसा दुगु विनदुगुचित्रा नेया // 302 // गमण मणुराणे इयरे वित्तहायरणं,म

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