Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 12
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ नीमती ओपनियुक्ति ] पुढविदगभगणिमारुअ वणस्सई वितिचउकपंचिंदी / अज्जीव पोन्थगाइसु गहिरसु असंजमो जेणं // 169 // पेहेत्ता संजमो वुत्तो, उपंहितावि संजमा / पमज्जेत्ता संजमो वुत्तो, परिहावत्तावि संजमो॥ 170 // ठाणाइ जत्य चेए पु-वं पडिलेहिऊण एजा / संजयगिहिचोयणऽचोयणे य वावारओवेहा // 171 // उवगरणं भाइरेगं पाणाई वाऽवहट्ट संजमणं / सागारिएऽपमण संजम सेसे पमजणया // 172 // जोगतिग पुत्वभणिों समत्तपडिलेहणाए सज्झाओ / चरिमार पोरिसीए पडिलेह तआ उ पायदुगं // 173 // पोरिसि पमाणकालो निच्छयववहारियो जिगक्खायों। निच्छयो करणजुयो ववहारमतो परं वोच्छं // 281 // श्रयणाईयदिणगणे अट्ठगुणेगट्ठिभाइए लद्धं / उत्तरदाहिणमाई पोरिसि पयसुझपरखेवा // 282 // (योगसट्ठिभागा खयवुड्डी होइ जं अहोरत्ते / तेण?गुणकारो एगट्ठी सूरतेएणं // 24 // प्र०) श्रासाढे मासे दो पया, पोसे मासे चउप्पया। चित्तसोएसु मासेसु, तिपया हवइ पोरिसी // 283 // अंगुलं सत्तरत्तेणं, पवखेणं तु दुभंगुलं / वड्डए हायए वावि, मासेणं चउरंगुलं // 284 // श्रामादबहुलपक्खे भद्दवए कत्तिए य पोसे य / फग्गुणवइसाहसु य बोद्धव्वा श्रोमरत्तायो // 285 // जेट्ठामूले अासाढसावणे छहिं अंगुलेहिं पडिलेहा। अट्ठहिं बीअतिय मि श्र तइए दस अट्टहिं चउत्थे // 286 // उववजिऊण पुत्वं तल्लेसो जइ करेइ उपयोगं / सोएण चक्खुणा घाणयो य जीहाए फासेणं // 287 // ..(भा०) पडिलेहणियाकाले फिडिए कल्लाणगं तु पच्छित्तं / पायस्स पासु घेठो सोयादवउत्त तल्लेसो // 174 // मुहणंतएण गोच्छं गोच्छगगहिअंगुलीहिं पडलाइं / उक्कुडयभाणवत्थे पलिमंथाईसु तं न भवे // 288 // चउकोण भाणकराणं पमज पाएसरीय तिगुणं तु / भाणस्स पुष्पगं तो इमेहिं कज्जेहिं पडिलेहे // 28 // मूसयरयउ. करे, घणसंताय.ए इय / उदए मट्टिा चेव, एमेया पडिवत्तियो // 20 //
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