Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 12
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 197
________________ 10) [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / द्वादशमो विभागः किलंतं दठ्ठणं कुकणो भणइ साहु / उज्झामि अंबकंजिय अजो ! गिण्हाहि णं निसिओ // 234 // सोऊण कोंकणस्स य साहू वयणं इमं विचिंतेइ / घविस. णविहिए निउणं जह भणि सव्वदंसोहिं // 235 // गविसणगहणकुडंगं नाऊण मुणो उ मुणियपरमत्थो / आहडरक्खणहेउ उवजइ भावओ निउणं // 236 // उक्कोसदव्व खेत्तं च अरण्णं कालओ निदाहो उ / भावे हट्ठपहहो हिहा उवरिं च उवओगो // 237 // दठूण तस्स रूवं अच्छिनिवसं च पायनिखेवं / उवर. जिऊण पुचि गुज्झिगमिणमोत्ति वज्जेह // 238 // सत्ताहवद्दले पुव्वसंगई वणियविख्वुवरखडणं / आमंत्रण खुड्डु गुरू अणुनवनं बिंदु उवओगो॥ 239 // एसा गवसणविही कहिया भे धीरपुरिसपन्नत्ता / गहणेसणंपि एत्तो वोच्छं अप्पक्खरमहत्थं // 457 // नाम ठवणादविए भावे गहणेसणा मुणेयन्वा / दवे वानरजूहं भावंमि य गणमाईणि // 458 // परिमडियपंडुपत्तं वणसंडं दठ्ठ अन्नहिं पेसे / जूहबई पडियरिए जूहेण समं तहिं गच्छे // 456 // संयमेवालोएउं जूहबई तं वणं समं तेहिं / वियरइ तेसि पयारं चरिऊण य ते दहं गच्छे // 460 // श्रोयरंतं पयं दद्रु, उत्तरतं न दीसइ / नालेण पियह पाणीयं, एस निकारणो दहो // 461 // गणे य दायए चेव, गमणे गहणागमे / पत्ते परियत्ते पाडिए य गुरुयं तिहा भाषे // 462 // दारं // . (भा०) आया पवयण संजम तिविहं ठाणं तु होइ नाय-वं / गोणाइ पुढविमाई निद्धमणाई पवयणमि // 240 // गोणे महिसे पासे पेलण पाहणण मारणं भवइ / दरगहिय भाणभेदो छड्डणि भिक्खस्स छक्काया // 463 // चलकुड्डपडण कंटगबिलस्स व पासि होइ अायाए / निक्खमपवेसवजण गोणे महिसे य श्रासे य // 464 // पुढविदग अगणिमास्य-तस्तसवज्जमि गणि ठाइजा / दिती व हे? उवरि जहा न घट्टेइ फलमाई // 465 // पासवणे उच्चारे सिणाण श्रायमणाण उपकुरुडे / निद्धमणमसुइमाई पत्यणहाणी विवज्जेजा // 466 // अवत्तम

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