Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 12
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
________________ श्रीमती ओपनियुक्तिः ] ...... - . [ 16 पुरिसेसु वीसं इत्थीसु दस नपुंसेतु। पवारणाए एए दुगुलिया जिणवरमयंमि // 443 // दोसेण जस्स अयसो श्रायासो पवयणे य अग्गहणं / विपरिणामो अप्पञ्चश्रो य कुच्छा य उप्पज्जे // 444 // पवयणमणपेहंतस्स तरस निद्धंधसस्त लुद्धस्स / बहुमोहस्स भगवया संसारोऽणतयो भणियो॥ 445 // जो जह व तह व लद्ध गिराहइ श्राहारउवहिमाईयं समणगुणमुक्कजोगी संसारपवड्डयो भणियो // 446 // एमण मणेसणं वा कह ते नाहिति जिणवरमयं वा / कुरिणमिव पोयाला जे मुंका पञ्चइयमेता // 447 // गच्छमि केड़ पुरिसा सउणी जह पंजरंतरनिरुता / सारणवारणचइया पासस्थगया पविहरंति // 448 // तिविहोवघायमेयं परिहरमाणो गवेसए पिंडं। दुविहा गवे. सणा पुण दव्वे भावे इमा दब्वे // 446 // जियसनुदेविचित्त-सभपविसणं कणगपिट्ठ-पासणया। डोहल दुबल पुच्छा कहणं याणा - य पुरिसाणं // 450 // सीवनिसरिसमोदग-करणं सीवनिरुवखहेढेसु / बागमण कुरं. गाणं पसत्य अपत्थउवमा उ // 451 // विइयमेयं कुरंगाणं, जया सीवन्नि सीईई / पुगवि वाया वायंति, न उणं पुंजगजगा // 452 // हत्थिगहणमि गिम्हे अरहट्टोहिं भरणं तु सरसीणं / अच्चुदएण नलवणा अभिरूढा गयकुनागमणं // 453 // विइयमेयं गयकुलाणं, जहा रोहंति नलवणा। अन्नवावि झरंति सरा, न एवं बहुप्रोदगा // 454 // राहाणाईसु विरड्यं थारंभकडं तु दाणमाईसु / पायरियनिवारणया अपसत्यितरे उवणयो उ // 455 / धम्मतइ अजवयरे लंभो वेउब्धियस्स नभगमणं / जेट्ठामूले अट्ठम उपरि हेट्ठा व देवाणं // 456 // - (भा०) सायावणऽदमेणं जेहामूलंमि धम्मरुइणो उ / गमणऽनगामभिवखहया य देवस्स अणुकंपा // 232 // कोंकणरूवविउव्वण अंबिल छडुमऽहं पियसु पाणं / छडोहित्तिय विहओ तं तिण्ह मुणित्ति उवओगो // 233 // तण्डाछुहा
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