Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 12
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 191
________________ :174 ] [ श्रामदागभसुधासिन्धुः दीदशो विमागर चलं गंतुमणं गोणाई अंतराइयं तत्थ / जुत्तेवि अंतरायं वित्तस चलणे य आयाए // 206 // वच्छो भएण नासइ डिंभ भषिक्खोभेण आयवावत्ती। भाया पवयण साणे काया य भएण नासंति // 207 // जो चंव य हरिएसु' सो चेव गमो उ उदगपुढवीसु। संपाइमा तसगणा सामाए होइ चउभगो // 208 // वामि वायमाणेसु संपयमाणेसु वा तसगणेसु / नाणुन्नायं गहणं अमियस्स य मा विगिंचणया // 209 // एयदोसविमुक्कं घेत्तुं छारेण अक्कमित्ताणं / चीरेण बंधिऊणं गुरुमूलपडिकमालोए // 388 // दंसियचंदिगुरुसेसए(स) य श्रोमस्थिरस्स भाणस्स / काउं चीरं उपरि ख्यं च छुभेज तो लेवं // 381 // अंगुट्ठपएसिणिमज्भिमाए घेत्तु घणं तो चीरं। श्रालिंपिऊण भाणे एक्कं दो तिगिण वा घट्टे // 310 // अन्नोऽन्नं अकमि उ अन्नं घट्टेइ वारवारेणं / प्राणेइ तमेव दिणं दवं रएउं अभत्तट्ठी // 311 // अमत्तट्ठियाण दाउं अन्नेसि वा अहिंडमाणाणं / हिंडेज असंथरणे असहू घेत्तुं श्ररइयं तु // 312 // न तरेजा जइ तिनी हिंडावेउं. तयो अछारेणं / उच्चुराणे हिंडइ श्रन्ने य दव्वं सि गेराहंति // 313 // लेत्थारियाणि जाणि उ घट्टगमाईणि तत्थ लेवेणं / संजमफाइनिमित्तं ताई भूमीइ गुंडेजा // 314 // एवं लेवग्गहणं प्राणयणं लिंपणा य जयणा य / भणियाणि अतो वोच्छं परिकम्मविहिं तु लेवस्स // 315 // लित्ते छगणिछारो घणेण चीरेणबंधिउं उराहे / अंकण परियत्नण घट्टणे य थोवे पुणो लेवो // 316 // (भा०) दाउ सरयत्ताणं पत्ताबधं अबंधणं कुना। साणाइरक्खणहा पमन छाउण्हसंकमणा // 210 // तदिवसं पडिलेहा कुभमुहाईण होई कायव्वा / छन्ने य निसंकुना कयकजाणं विउस्सग्गो // 211 // अट्ठगहेउं लेवाहियं तु सेसं सरूवगं पीसे। अहवावि नत्थि कज्जं सरूवमुझे तो विहिणा // 317 // पढमचरिमा सिसिरे गिम्हे अद्धं तु

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