Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 12
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 177
________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : द्वादशमो विभागः / कारिजा // 133 // (ना अछा जा फिडिओ सइकालो अलस सोविरे दोसा। गुरुमाई तंण निणा विवहणुस्सक ठवणाई // 17 // अप्पत्ते अविलंभो हाणो ओसकणाइ अइभद्दे / अणहिंडतो अचिरं न लहइ जंकिंचि वा इ॥१८॥ गिण्हामि अप्पणी ता पजन्तं तो गुरुण पच्छा उ / चित्तूण तेसि पच्छा सोअलओ सकमाईओ // 19 // परिआविजइ खवगो अह गिण्हइ अप्पणो इअरहाणी / अविदिन्ने उमपाणाइ थडो न उ गच्छई पुणो जं च / माई भद्दगभाई पंतण उ अप्पणो हाए // 20 // ओहासइ खाराई विजंतं वा न वारई ल हो / जे अगवेसगदोसा एगस्स य ते उ लुहस्स // 21 // नडमाई पिच्छंतो ता अच्छइ जार फिई वेला। सुत्तत्थे पडिबडो ओसगुसकमाइआ / // 22 // प्र० ) एयदोसविनुक्कं कडजोगें नायसोल पायारं / गुरुभत्तिसंविणायं वेयावच्चं तु कारज्जा // 134 // साहति अ पिअधम्मा एसादोले अभिग्गहविसेसे / एवं तु विहिग्गहणे दवं वड्थति गोयन्था // 135 // दवप्पमाणगणणा खारिअफोडिअ तहेव अडा य। संविग्ग एगठाणे अणेगसासु पन्नरस // 136 // संघाडेगो ठवणाकुलेसु सेसेसु बालवुड्डाई। तरुणा बाहिरगामे पुच्छा दिढनऽगारीए // 137 // . पुच्छा गिहिणो चिंता दिटुंतो तत्थ खुजबोरीए। आपुच्छिऊण गमणं दोसा य इमे अणापुच्छे // 23 // ___(भा०) परिमिअ-भत्तगदाणे नेहादवहरइ थोव थोघं तु। पाहण वियाल आगम विसन्न आसासणादाणं // 138 // एवं पोइविवुड्डो विवरोयऽण्ण होइ दिलुतो / लोउत्तरे विसेसो असंचया जेण समणा उ॥ 139 // जणलावो परगामे हिंडिन्ताऽऽणति वसइ इह गामे। दिजह चालाईणं कारणजाए य सुलभ तु // 140 // पाहुणविसेसदागे निजर कित्ती अ इहर विवरोयं / पुवं चाहणसिग्गा न दंति संतंपि कज्जेसु // 141 // गामभासे बयरी नोसंदकडुप्फला य खुज्जा य / पक्कामालसडिंमा खायंति घरे गया दूरे // 42 // गोमम्भासे बयरी नोसंदकडुप्फला य खुज्जा य / पक्कामालसडिंभा खायंतियरे गया दूरं // 143 // सिग्घयरं आगमणं तेसिंऽण्णेसिं च देति सयमेव / खायंती एमेव उ आयपरहिआवहा तरुणा॥ 144 // खोरदहिमाइयाणं लंभो सिग्यतरगं प आगमणं / पइरिक उग्गमाई विजडा अणकंपिआ इयरे // 145 //

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