Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 12
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 176
________________ भीमती ओपनियुक्तिः ] [1 // वंदंता दायंतियरे विहिं वोच्छं // 117 // सव्वे दडु उग्गाहिएण ओयरिअ भयं समुप्पज्जे / तम्हा ति दु एगो वा उग्गाहिअ चेहए वंदे // 118 // सडाभंगोऽणुग्गाहियंमि ठवणाइया य दोसा उ / घरचेइअ आयरिए कावयगमणं च गहणं च // 119 // खेत्तंमि अपुव्वंमी तिहाणट्ठा कहिंति दाणाई / असई अ चेइयाणं हिंडंता चेव दायंति // 120 // दाणे अभिगमसडे संमत्ते खलु तहेव मिच्छत्ते / मामाए अचियत्त कुलाईदायंति गीयत्था // 121 // कयउस्सग्गामंतण पुच्छणया अकहिएगयरदोसा / ठवणकुलाण य ठवणा पविसइ गोयत्थसंघाडो // 122 // गच्छंमि एस कप्पो वासावासे तहेव उडुषद्धे / गामागरनिगमेसु अइसेसी ठावए सड्डी // 123 // कि कारणं चमढणा दव्वखयो उग्गमोऽवि श्रन सुज्झे / गच्छमि निययकज्जे पायरियागलाणपाहुणए // 237 // (भा०) पुधिपि वीरसुणिआ छिका छिका पहावए तुरिअं / सा चमढणार सि(खि)ना संतंपि न इच्छए घेत // 124 // एवं सडकुलाई चमढिज्जताई ताई अण्णेहिं / निच्छंति किंचि दासंतंपि तथं गिलाणस्स // 125 // दव्वर खएग पंतो इन्थि घाएज्ज कीस ते दिण्णं ? / भद्दो हहपहहो करेज अन्नंषि समणट्ठा // 126 // आयरिअणुकंपाए गच्छो अणुकंपिओ महाभागो। गच्छाणुकंपयाए अव्वोच्छित्ती कया तित्थे // 127 // परिहोणं तं दव्वं चमढिज्जंतं तु अण्णमपणेहिं / परीहीणं मि य दव्वे नत्थि गिलाणस्स जं जोग्गं // 128 // चत्ता हाँति गिलाणा आयरिया पालवुड्डसेहा य / खमगा पाहुणगाविय मजायमहकमतेणं // 129 // सारक्खिया गिलाणा आयरिया बोलवुड्सेहा य / खमगा पाहुणगाविय मजायं ठावयतेणं // 130 // जड्डे महिसे चारी आसे गोणे अ तेसि जावसिया। एएसि पडि. वक्खे चत्तारि उ संजया हुँति // 238 // (भा०) जड्डो जं वा तं सुकुमारं महिसिओ महुरमासो / गोणी सुगंधदव्वं इच्छइ एमेव साहूवि // 131 // एवं च पुणो ठविए अप्पविसंते भवे इमे दोसा। वीसरण संजयाणं विसुक्खगोणी अ आरामो // 132 // अलसं घसिरं सुविरं खमगं कोहमाणमायलोहिल्लं / कोहलपडिपडं वेयावच्चं न

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