Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 12
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 49
________________ 29] [ श्रीमदागमत्यासिन्धुः / द्वादशना निमाणा संतो। धम्मवरचकवट्टी अपच्छिमो वीरनामुत्ति // 423 // श्राइगरु दसाराणं तिविठ्ठ नामेण पोषणाहिबई। पित्रमित्तचकवट्टी मूयाइ विदेहवासंमि // 424 // तं वयणं सोऊणं राया अंचियतारहसरीरो। अभिवंदिउण पितरं मरीइमभिवंदो(ॐ) नाइ // 425 // सो विणएण उवगयो काऊण पयाहिणं च तिक्खुत्तो। वंदइ अभित्थुरांतो इमाहि महुराहि वग्गूहिं // 426 // लाहा हु ते सुलद्धा जंसि तुमं धम्मचकवट्टीणं। होहिसि दसचउदसमो अपच्छिमो वीरनामुत्ति // 427 // गावि श्र. पारिवज्ज वंदामि अहं इमं व ते ज-मं / जं होहिसि तिथयरो अपच्छिमो तेण वंदामि // 428 // एवराहं थोउणं काउणं पयाहिणं च तिखुत्तो। श्रापु. च्छिऊण पितरं विणीअनयरिं यह पवितो // 421 // तव्वयणं सोडणं तिवई श्राप्फोडिऊण तिक्खुत्तो / अब्भहिय-जायहरिसो तत्थ मरीई इमं भणइ // 430 // जइ वासुदेवु पढमो मूाइ विदेहि चकवट्टितं / चरमो तित्थराणं होउ अलं इत्ति मज्झ (ग्रहो मए एति लड़) // 431 // अयं च दमाराणं पिया य मे चकवट्टिवंसस्स। अजो तित्थयराणं ग्रहो कुलं उत्तमं मम // 432 // अह भगवं भवमहणो पुव्वाणा-मणूणगं सयसहस्सं / अणुपुब्बि विहरिऊणं पत्तो अट्ठावयं सेलं // 433 // अट्ठावयंमि सेले चउदसभत्तेण सो महरिसीणं / दसहि सहस्सेहि समं निव्वाण मणुत्तरं पत्तो // 434 // निव्वाणं' चिङगागिई जिण स्स इक्खाग सेसयाणं च / सकहा थूम जिणहरे जायग तेणहिअग्गित्ति // 435 // (भा०) थूभसय भाउगाणं चउवीसं चेव जिगहरे कासो। सव्वजिणाणं पडिमा वण्णपमाणेहिं निअएहिं // 45 // श्रायंसघरपवेसो भरहे पडणं च अंगुलीयस्स / सेसाणं उम्मश्रणं संवेगो नाण दिक्खा य // 436 // पुच्छंताणं कहेइ उवट्ठिए देइ साहुणो सीसे / गेलन्नि अपडियरणं कविला. इत्थंपि इहयपि // 437 //

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