Book Title: Agam Guna Manjusha
Author(s): Gunsagarsuri
Publisher: Jina Goyam Guna Sarvoday Trust Mumbai
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(२४-३३) दस पइन्नयमुत्तेस - ३ चंदावेज्झयं
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हु वुच्चइ विणीओ । इड्डीगारवरहियं सीसं कुसला पसंसंति ॥४०॥ ५२९. दसविहवेयावच्चम्मि उज्जुयं उज्जयं च सज्झाए। सव्वावासगजुत्तं सीसं कुसला पसंसंति ॥४१|| ५३०. आयरियवण्णवाई गणसेविं कित्तिवद्धणं धीरं । धीधणियबद्धकच्छं सीसं कुसला पसंसंति ॥४२॥ ५३१. हंतूण सव्वमाणं सीसो होऊण ताव सिक्खाहि । सीसस्स होति सीसा, न होति सीसा असीसस्स ॥४३॥ ५३२. वयणाई सुकडुयाइं पणयनिसिट्ठाइं विसहियव्वाइं । सीसेणाऽऽयरियाणं नीसेसं मग्गमाणेणं ।।४४।। ५३३. जाइ-कुल-रूव-जोव्वण-बल-विरिय-समत्तसत्तसंपन्नं । मिउ मद्दवाइमपिसुणमसढमथद्धं अलोभं च ।।४५|| ५३४. पडिपुण्णपाणि-पायं अणुलोभं निद्ध-उवचियसरीरं । गंभीर-तुंगनासं उदारदिहिँ विसालच्छं ।।४६।। ५३५. जिणसासणमणुरत्तं गुरुजणमुहपिच्छिरं च धीरं च । सद्धागुणपरिपुण्णं विकारविरयं विणयमूलं ॥४७॥ ५३६. कालन्नू देसन्नू समयन्नू सील-रूव-विणयन्नू। लोह-भय मोहरहियं जियनिद्द-परीसहं चेव ॥४८॥५३७. जइ वि सुयनाणकुसलो
होइ नरो हेउ-कारणविहन्नू । अविणीयं गारवियं न तं सुयहरा पसंसंति॥४९|| रागरहियं अकंपममच्छरियमकिंचणं निउणबुद्धिं । अचवलमवंचणमइं जिणपावयणम्मि फु 9 य पगब्भं ॥१॥ ५३८. सीसं सुइमणुरत्तं निच्चं विणओवयारसंपन्नं । वाएज्ज व गुणजुत्तं पवयणसोहाकरं धीरं ॥५०॥ ५३९. एत्तो जो परिहीणो गुणेहिं
गुणसयनओववेएहिं । पुत्तं पिन वाएज्जा, किं पुण सीसं गुणविहूणं ? ॥५१॥ ५४०. एसा सीसपरिक्खा कहिया निउणेत्थ सत्थउवइट्ठा । सीसो परिक्खियव्वो पारतं मग्गमाणेणं ॥५२॥ ५४१. सीसाणं गुणकित्ती एसा मे वण्णिया समासेणं । दारं ३ । विणयस्स निग्गहगुणे ओहियहियया निसामेह ॥५३|| [गा. ५४-६७. -विणयनिग्गहगुणं त्ति चउत्थं दारं ] ५४२. विणओ मोक्खद्दारं विणयं मा हू कयाइ छट्ठज्जा । अप्पसुओ वि हु पुरिसो विणएण खवेइ कम्माई ||५४|| ५४३. जो + अविणीयं विणएण जिणइ, सीलेण जिणइ निस्सीलं । सो जिणइ तिण्णि लोए, पावमपावेण सो जिणइ ॥५५॥ ५४४. जइ वि सुयनाणकुसलो होइ नरो हेउ
कारणविहन्नू । अविणीयं गारवियं न तं सुयहरा पसंसंति ॥५६।। ५४५. सुबहुस्सुयं पि पुरिसं पुरिसा अप्पस्सुयं ति ठावेति । गुणहीण विणयहीणं चरित्तजोगेण ॥ पासत्थं ।।५७|| ५४६. तव-नियम-सीलकलियं, उज्जुत्तं नाण-दसण-चरित्ते । अप्पस्सुयं पि पुरिसं बहुस्सुयपयम्मि ठावेति ॥५८॥ ५४७. सम्मत्तम्मि य नाणं आयत्तं, दंसणं चरित्तम्मि । खंतिबलाओ य तवो, नियमविसेसो य विणयाओ॥५९|| ५४८. सव्वे य तवविसेसा नियमविसेसा य गुणविसेसा य । नत्थि हु विणओ जेसिं मोक्खफलं निरत्थयं तेसिं॥६०|| ५४९. पुव्विं परूविओ जिणवरेहिं विणओ अणंतनाणीहिं । सव्वासु कम्मभूमिसु निच्चं चिय मोक्खमग्गम्मि॥६१||५५०. जो विणओ तं नाणं, जं नाणं सो उवुच्चई विणओ। विणएण लहइ नाणं, नाणेण विजाणई विणयं ॥६२।५५१. सव्वो चरित्तसारो विणयम्मि पइट्ठिओ मणूसाणं । ई नहु विणयविप्पहीणं निग्गंथरिसी पसंसंति ॥६३।। ५५२. सुबहुस्सुओ वि जो खलु अविणीओ मंदसद्ध-संवेगो । नाराहेइ चरित्तं, चरित्तभट्ठो भमइ जीवो ॥६४॥ ५५३. थोवेणं वि संतुट्ठो सुएण जो विणयकरणसंजुत्तो। पंचमहव्वयजुत्तो गुत्तो आराहओ होइ ।।६५।। ५५४. बहुयं पि सुयमहीयं किं काही विणयविप्पहीणस्स ? | अंधस्स जह पलिता दीवसयसहस्सकोडी वि ॥६६।। ५५५. विणयस्स गुणविसेसा ए, कए वणिया समासेणं । दार ४ । नाणस्स गुणविसेसा ओहियकण्णा निसामेह ॥६७|| [गा. ६८-९९. नाणगुणे त्ति पंचमं दारं] ५५६. न हु सक्का नाउं जे नाणं जिणदेसियं महाविसयं । ते धन्ना जे पुरिसा नाणी य चरित्तमंता य॥६८|| ५५७. सक्का सुएण णाउं उड्डे च अहं च तिरियलोयं च । ससुराऽसुरं समणुयं सगरुल-भुयगं सगंधव्वं ।।६९।। ५५८. जाणंति बंध-मोक्खं जीवाऽजीवे य पुण्ण-पावे य। आसव संवर निज्जर तो किर नाणं चरणहेउं॥७०॥ ५५९. नायाणं दोसाणं विवज्जणा, सेवणा गुणाणं च । धम्मस्स साहणाइं दोन्नि वि किरे नाणसिद्धाइं॥७१॥ ५६०. नाणी वि अवÈतो गुणेसु, दोसे य ते अवज्जितो । दोसाणं च न मुच्चइ तेसिन वि ते गुणे लहइ॥७२॥ ५६१. नाणेण विणा करणं, करणेण विणा न तारयं नाण । भवसंसारसमुदं नाणी करणट्ठिओ तरइ ॥७३।। ५६२. अस्संजमेण बद्धं अन्नाणेण य भवेहिं बहुएहिं । कम्ममलं सुभमसुभंकरणेण दढो धुणइ नाणी ।।७४॥ ५६३. सत्येण विणा जोहो, जोहेण विणा य जरिसं सत्थं । नाणेण विणा करणं, करणेण विणा तहा नाणं ।।७५।। ५६४. नादंसणिस्स नाणं, न वि अन्नाणिस्स होति करणगुणा । अगुणस्स नत्थि मोक्खो, नत्थि अमुत्तस्स नेव्वाणं ।।७६।। ५६५. जं नाणं तं करणं, जं करणं पक्यणस्स सो सारो। जो पवयणस्स सारो सो परमत्थो
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